
गुरु जी मेरे नमन आपको,
अर्पित करूं सुमन आपको।
हमको पढ़ना लिखना सिखाकर,
सन्मार्ग पर चलना सिखलाया।
गुरु द्रोणाचार्य बन आपने,
अर्जुन को उसका लक्ष्य दिखाया।
जीवन की भूल भुलैया में,
सही पथ चुनना सिखलाया।
आसमान की बुलंदियों पर,
हौसलों से उड़ना सिखलाया।
दीपक बनकर गुरु जी आपने,
अंधेरों से लड़ना सिखलाया।
कपटता मन से त्याग कर,
परोपकार करना सिखलाया ।
जब भी अाई मन में कोई दुविधा,
हम सबको उसका हल बतलाया।
जीवन को सुख समृद्ध बनाने का,
हम सबको गुरुमंत्र बतलाया।
मन के हारे हार है मन के जीते जीत,
हम सबको सबक ये सिखलाया।
देश की सेवा करने की खातिर,
ज्ञान का अमृत हमें पिलाया।
डॉक्टर वकील सैनिक बनाकर,
हमें राष्ट्रभक्ति का पाठ पढ़ाया ।
गुरु जी आपकी शिक्षाओं को,
है दिल से हम सबने अपनाया।
अर्जुन का है ये वचन आपसे,
मैं भी अपना फ़र्ज़ निभाऊंगा,
तन मन धन से मेहनत करके,
जग में मैं भी परचम लहराऊंगा ।
रचना –
सपना (स० अ०)
जनपद- औरैया