माँ, सुनता हूँ तुम सुंदर थी,
पर देखी नही तुम्हारी सुंदरता..
सिवाय,
हथेलियों पर उभर आई
बर्तन के खुरदरेपन के ,
याधुँधुआते चौके से मूँदी तुम्हारी आँखों के।
माँ, तुम गाती भी हो?..
कभी सुना नहीं तुम्हारा गाना,
सिवाय लोरी के..
जो मुझे सुलाने के लिए गाती थी।
माँ, तुम सोती भी हो?..
कभी देखा नहीं,
जब भी आँख खुली,
तुम्हें जगा पाया।
माँ, तुमने अपने लिए कभी जिया..?
या मुझे ही सौंप दिया खुद को!
माँ,’मैं कृतज्ञ हूँ तुम्हारा’
कहना अलम् होगा
या अपमान होगा तुम्हारा..?
साँसों का हिसाब नहीं रखा जाता,
न तो कृतज्ञ हुआ जाता है..
माँ,
तुम मेरी साँस हो।
#डॉ. आशुतोष राय
परिचय: सहायक प्राध्यापक (हिन्दी) के रुप में डॉ.आशुतोष कुमार राय राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिरसागंज( फ़िरोज़ाबाद,उत्तर प्रदेश) में सेवारत हैं। आपका पूर्व कार्यक्षेत्र पीजीटी (हिन्दी )केन्द्रीय विद्यालय संगठन,नई दिल्ली रहा है। आपकी रचनाओं में भावपूर्णता स्पष्ट देखी जा सकती है।आप भी शौकिया लेखन में सक्रिय हैं।
बहुत उम्दा भावों का सम्प्रेषण आदरणीय।
अद्भुत……