
मेरी आँखों में क्यों तुम
आँसू बनकर आ जाते हो।
और अपनी याद मुझे
आँखों से करवाते हो।
मेरे गमो को आँसुओं के
द्वारा निकलवा देते हो।
और खुशी की लहर का
अहसास करवा देते हो।।
मुझे गमो में रहने और
उनमें जीने की आदत है।
पर हँसते हुए लोगों को
दुआएँ देना मेरी आदत है।
तुम रहो सदा खुशाल
अपनी नई जिंदगी में।
मैं तुम्हें खुश देखकर
अपने गम भूल जाती हूँ।।
बदलते हुये इस जमाने में
कुछ तो नया होना चाहिए।
अपनी मोहब्बत का अहसास
दूर होकर भी होना चाहिए।
भले ही उन्हें मोहब्बत का
अहसास आज न हो ।
पर जमाने की नजरो में
तो इसे जिंदा रहनी चाहिए।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन “बीना” मुंबई