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आज कहूँ अंतर की बात,
गुजरा जीवन गहरी रात।
धीर छूटता नीर बरसता,
चुप ज्यूँ भोर की उजास
चुभते भूले से व्याघात,
आज कहूं अंतर की बात।
नीरस वाणी सूखी आशा,
गहरे छुपी प्रेम पिपासा
अपनों से मिले आघात,
आज कहूं अंतर की बात।
साथी जीवन बीता आधा,
बिन जाने अपनी मर्यादा
क्यों बिखरा मन अवसाद?,
आज कहूँ अंतर की बात।
केलि करती है अभिलाषा,
मन कीअपनी है परिभाषा
जागा जीवन नव प्रभास,
आज कहूँ अंतर की बात।
नेह उपजा मैं जब बूढ़ा,
मिला अपना-सा विश्वास
अमिय बन गया अहसास,
आज कहूँ अंतर की बात।
तुम जागे? जब जग सोया,
पाया तुमने क्या उल्लास
ऋत जाना जब मिटा त्रास,
आज कहूँ अंतर की बात..
गुजरा जीवन गहरी रात।।
#विजयलक्ष्मी जांगिड़
परिचय : विजयलक्ष्मी जांगिड़ जयपुर(राजस्थान)में रहती हैं और पेशे से हिन्दी भाषा की शिक्षिका हैं। कैनवास पर बिखरे रंग आपकी प्रकाशित पुस्तक है। राजस्थान के अनेक समाचार पत्रों में आपके आलेख प्रकाशित होते रहते हैं। गत ४ वर्ष से आपकी कहानियां भी प्रकाशित हो रही है। एक प्रकाशन की दो पुस्तकों में ४ कविताओं को सचित्र स्थान मिलना आपकी उपलब्धि है। आपकी यही अभिलाषा है कि,लेखनी से हिन्दी को और बढ़ावा मिले।
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Sat Jun 3 , 2017
कूकर कौआ लोमड़ी,ये होते बदजात। लठ्ठ से इनको मारिए,तब ये सुनते बात। तब ये सुनते बात,पाक है लोमड़ ऐसा। छाती पर हो लात,बिलखता कूकर जैसा। कह सुशील कविराय,मिटा दो पाक का हौआ। घुसकर मारो आज,भगा दो कूकर कौआ। सीमा पर सेना लड़े,घर उजाड़ें गद्दार। कश्मीर में केसर जहर,कैसे होय उद्धार। […]