गड़रिया कभी नहीं भटकता

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sima shah

रोज सुबह केवल,

सूरज ही नहीं निकलता

पहाड़ियों की ओट से

एक गडरिया भी आता है,

पगडंडियों पर

काँधे पर लाठी लेकर

सीना फुलाकर

रेवड़ भूल न जाए रास्ता

रखता वो चौकस निगाहें

क्या सूरज भी

ऐसी रखवाली करता है

किरणों की

 

दिनभर सूरज की,

यात्रा के साथ

चलती है उसकी भी यात्रा

पोटली की सूखी रोटियां

नदी से बहता पानी..

विराम देता है उसे ऊर्जा़,

आनंद की अनुभूति

जब सूरज लौट जाता है

पहाड़ियों के पास

 

पहाड़ी और पगडंडी में

कहां होती है वार्ता..

कहाँ भेड़ और

पर दोनों की ही यात्रा

होती है प्रतिदिन,

देखा है मैंने कभी

सूरज को जाते हुए

बादलों की ओट में

लेकिन गड़रिया,

कभी नहीं भटकता……….

                                                                                 #डॉ. सीमा शाहजी

परिचय : डॉ. सीमा शाहजी की शिक्षा एम.ए.(हिन्दी-अंग्रेजी) के साथ पीएचडी(हिन्दी)हैl करीब डेढ़ दशक से विभिन्न विधाओं में आपका लेखन जारी है। आदिवासी संस्कृति व इस संस्कृति में महिलाओं की स्थिति पर आपने व्यापक अध्ययन किया हैl भारत सरकार की फ़ैलोशिप हेतु संदर्भ व्यक्ति के रूप में भी कार्यानुभव है,तो राज्य संसाधन केन्द्र (भोपाल-इन्दौर)के लिए साहित्य सृजन करती हैंl पूर्वोत्तर हिन्दी अकादमी(शिलांग) की कार्यशाला और भारत सरकार संस्कृति मंत्रालय द्वारा भी सीनियर फ़ैलोशिप(2016-17)हेतु चयनित हैl देश-प्रदेश के ख्याति प्राप्त पत्र-पत्रिकाओं में  कविता,कहानियांक,लघुकथाएं,यात्रा वृतांत,निबंध,लेख समीक्षा का प्रकाशन तो,आकाशवाणी के मध्यप्रदेश एवं राजस्थान के केन्द्रों से कविताओं,कहानियों एवं वार्ताओं का सतत प्रसारण होता रहा है। आप आल इंडिया पोयट्स कांफ्रेन्स(उत्तरप्रदेश)सहित इन्दौर लेखिका संघ,आजाद साहित्य परिषद आदि संस्थाओं से भी जुड़ी हैंl पुरस्कार के तौर पर विद्यासागर की उपाधि,पूर्वोत्तर हिन्दी अकादमी द्वारा सम्मान,महिला सशक्तिकरण लेखन पर पुरस्कार सहित अंर्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर भी सम्मान दिया गया हैl म.प्र. के विभिन्न शा.महाविद्यालयों में सहायक प्राध्यापक के रूप में हिन्दी विषय का 2001 से निरन्तर अनुभव हैl  डॉ.शाहजी थांदला(जिला झाबुआ,मप्र)में निवासरत हैंl 

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