
मत पिलाओं अपने आँखों से
इतना की हम उठा न सके।
मत दिखाओ अपने हुस्न को
कि हम नजर हटा न सके।
जब भी होते है दीदार तुम्हारे
खो देते है अपना सुध्दबुध।
और तुम्हें ही अपनी
नजरो से देखते रहते है।।
खोलकर उलझे हुए कालेबालों को
जब तुम सुलझती हो।
ऐसा लगता है जैसे काली
घटायें घिर आई हो आंगन में।
अपने हाथो से जब तुम
बालों को सहलती हो।
तब कभी कभी चाँद सा
सुंदर चेहरा दिख जाता है।।
भले क्यों न हो आंवस्या की रात
पर उसमें भी पूनम का चाँद दिखते हो।
जो देखने वालो की दिलकी
धड़कनो को बड़ा देती है।
और अंधेरी रात में भी
तुम चाँद सी खिल जाती हो।
और चाहने वालो के दिलमें
मोहब्बत के दीप जला देते हो।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन मुंबई