मां

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हे मां तुम कहां हो
मातृ दिवस भी
कब का बीत गया
कब तक रूठी रहोगी
अब आ भी जाओ
तेरी गोद मे सिर रखने से
मिट जाती है
मेरी सारी थकान
मिल जाता है मुझे
एक ऊंचा मुकाम,
सुना है जो
एक बार चले गए
लौट कर नही आते
क्या तुम भी
अब नही आओगी
मुझे सन्मार्ग
नही दिखाओगी
मां तोड़ दो बंधन
कभी न आने का
कम से कम एक बार
तो आ ही जाओ
मुझे मेरे बचपन में
लेकर चलने के लिए
मुझे सुलाने को
लोरी सुनाने के लिए।
—श्रीगोपाल नारसन

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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