ये कैसा अजीब मंजर है,
हर के हाथ खंजर है..
यहाँ पैदावार कम होती है,
सारी जमीन ही बंजर है।
पढ़ लिखकर क्या पाएगा,
पिता पुत्र को समझाता है..
पढ़े-लिखे सब बेरोजगार हैं,
फिर खेती से भी जाएगा।
तेरे बड़े भाई को पढ़ाया था,
उसने उम्मीदों को जगाया था..
अब तक वो बेरोजगार है,
खेती करने में लाचार है।
बात मेरी मान जा बेटा,
छोड़ ख्वाब ये पढ़ाई का..
आ मैं सिखा दूँ तुझको,
तरीका हल की जुताई का।
अगर सब शहर को जाएंगे,
तो अन्न कौन उपजाएगा..
शिक्षा से नहीं भूख है मिटती,
पेट को क्या समझाएगा।
माना शिक्षा से ज्ञान है मिलता,
और विकास भी आता है..
पर इससे भी ज्यादा जरुरी,
रोटी और भूख का नाता है।
भूख सदा अपराध को जनती,
शिक्षा भर से क्या होगा..
पढ़े-लिखेगा वो ही भाई,
जिसका पेट भरा होगा।
#प्रवीण द्विवेदी
परिचय : प्रवीण द्विवेदी उ.प्र के बाँदा में रहते हैं और शौकिया लिखते हैं। आपने हिन्दी से एमए किया है,साथ ही बीएड भी शिक्षित हैं।