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नज़र मिलते ही मेरे दिल को फौरन कर गया घायल,
तुम्हारी आँख का काजल,तुम्हारी आँख का काजल।
तुम्हारी हिरनी जैसी चाल पर संसार मरता है,
तुम्हें जो देख लेता है वही हो जाता है पागल।
तुम्हारी ज़ुल्फ बिखरे तो मुझे महसूस होता है,
उमड़ आया हो जैसे स्याह-सा बरसात में बादल।
लहर उठती है दिल में और होता है नशा-तारी,
हवाओं में कभी हमदम न लहराया करो आँचल।
तुम्हारी हर अदा ‘पंकज’ को दीवाना बनाती है,
तुम्हारी शोखियों से ज़िन्दगी में मच गई हलचल।।
*****
(स्याह -काला,नशा-तारी- नशा चढ़ना)
————#पंकज सिद्धार्थ
परिचय : पंकज सिद्धार्थ नौगढ़ सिद्धार्थनगर (उत्तर प्रदेश )से ताल्लुक रखते हैं,यानि गौतम बुद्ध की भूमि से।आपने गोरखपुर विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर हिन्दी से किया है और बीएड जारी है।आप कविता को जीवन की आलोचना शौक मानकर अच्छी रचना लिखते हैं।
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