पतंग हूं…

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krunal
अपने ही दम पे
उड़ती हुई
पतंग हूँ,
पता नहीं डोर का
कच्ची है,कि पक्की,
हवाओं के सहारे
निकली हुई
पतंग हूँ।
मिल जाए खुला गगन तो
पवन की क्या बिसात,
अंदर से चोट खाई हुई
पतंग हूँ।
कौन उड़ाए,
कौन काटे
कौन लूटेगा मुझे,
क्या पता ?
लुटेरों की बस्ती में,
कटी हुई
पतंग हूँ।
कागज़ की काया लेकर
निकाली हूँ तूफानों में,
ज़िन्दगी के हर मुकाम
फतेह करने वाली,
पतंग हूं मैं…॥

             #कृनाल प्रियंकर

परिचय : कृनाल प्रियंकर गुजरात राज्य के अहमदाबाद से हैं और स्नातक(बीकॉम)की पढ़ाई  पूरी कर ली हैl  आप वर्तमान में ग्रामीण विकास विभाग(गुजरात) में कार्यरत  हैंl  इन्हें शुरु से ही कविताओं से विशेष लगाव रहा है,तथा कविताएं पढ़ना-लिखना बेहद पसंद है

matruadmin

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