एक इंतजार ऐसा भी…

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कण-कण जोड़ के यह देह बनी
तिनका तिनका जोड़ के यह आशियाना
कुछ पल, महीना, बरस साथ रहे
फिर आई विदाई की बेला
जिसका ना कोई आदि, ना कोई अंत ।
वह छोटी छोटी सी बातें
वह खेलना, वह लड़ना
मेरा एक खिलौना चला गया
अपनी योग्यता को निखारने
छोड़ गया ढेर सारी बातें- यादें
उन बेजान सी चीजों में ।
मम्मी पापा करके आगे- पीछे घूमना
अचानक कहकर मां अच्छे से रहना
तुम भी अच्छे से रहना बेटा
औरचला जाना अपने कर्तव्य पथ को संवारने में
सूना हो गया मेरा आंगन
बस तेरी यादों का साथ ।
वह बचपन की अबूझ सी तेरी बातें
तेरी नादानी और मेरी घुड़की देना
फिर रूठना ,फिर मनाना ।
अभी गया ही नहीं तू कि तेरे आने का इंतजार
जब आएगा काबिल बन कर
रह पाऊंगी क्या तेरी मां बनकर ?
हम दूर जाने लगे बिट्टू
तेरी जवाबदारीओ के निर्वाहन हेतु
तेरे वह नन्हे कदम अब बड़े होने लगे
उंगली पकड़कर, गोद में रहने वाला
अब बिना किसी सहारे के खुद अकेला चलने लगा हमसे मार्गदर्शन लेने वाला
कभी-कभी हमारा मार्गदर्शक बनने लगा ।
एक छोटा सा शिशु
दुनिया का सामना करने के लिए
तैयार होने लगा ।
मेरा आंगन सुना हो गया
मेरी गोद अकेली रह गई
कैसे जिऊंगी एक -एक लम्हा
पहाड़ सा जिंदगी का
अपने ही कंधों पर कब तक
खुद को ढोती रहूंगी।
इन बेजान-सी चीजों से
कब तक बात करती रहूंगी
कब तक अपने शून्य को भर्ती रहूंगी ?
जीवन का लक्ष्य ही तुम हो
तुम्हारे रास्तों के कांटों को
फूलों में तब्दील करना है हमें
अपने संघर्ष की पराकाष्ठा को
सर्वश्रेष्ठ साबित करना है हमें ।

#स्मिता जैन

matruadmin

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