सूरज की ताप में,
बूंदों की सैलाब में,
आँसू के नमक में,
खुशियों की चमक में ।
वो काम करते है,
वहां, जहाँ वो
जीते औऱ मरते हैं ।
सिर पर साफा गमझी का,
तलवे पर ओढ़नी मिट्टी का ।
चेहरे पर चमक लम्बी मूछों का,
हाथों को सहारा गाय की पूंछोँ का ।
वो चलते हैं
उस मेड़ पर
जहाँ उस गरीब के बच्चे पलते हैं ।
पूरे दिन की थकावट,
पर शाम को
उनके हुक्कों की सजावट ।
रात को घास के छत के नीचे सोना,
औऱ फिर एक नये हौसले से उनकी सुबह होना ।
ये जिंदगी है उन किसान की,
जिनकी मेहनत से
पहचान है हमारे देश की शान की ।
निधि झा
सहरसा (बिहार)