
दिल में दहक रहे अंगारे,
आँखों में गुस्से की ज्वाला है।
आ जाए जो नारी खुद पर,
कौन उसको रोकने वाला है?
मान मर्यादा की ख़ातिर,
पी जाए विष का प्याला है।
हर रिश्ते में बंध जाए नारी,
पहने बंधन की माला है।
जिस घर में पूजी जाए नारी,
उस घर में प्रेम का उजाला है।
अपमान करे जो नारी का,
खुले ना किस्मत का ताला है।
ममता का सागर है नारी,
अमृत का एक प्याला है।
जिस घर मे न हो नारी,
उस घर में गड़बड़झाला है।
कोमल है फूलों सी नारी,
प्रेम की तुलसी माला है।
सागर सा धैर्य समाया दिल में,
समाए आँखों में मधुशाला है।
स्वाभिमान को चोट जो पहुंचे,
बन जाए चंडी ज्वाला है।
आई खुद पर जब जब नारी,
दुष्टों का नाश कर डाला है।
स्वरचित
सपना (स. अ.)
जनपद – औरैया