चुभती है मेरे कानों में खामोशी तेरी हरदम,
कुछ तो मरहम लगा दो अपनी बातों से हमदम
आहत है दिल मेरा तेरी इस खामोशी के जुल्म से
हर रोज बात कर लिया करो नहीं तो बताओ—–
कौन तुम्हें ज्यादा बेहतर समझेगा मुझसे
अल्फ़ाज़ महकाओ कुछ इस तरह कि,
जैसे गुल महकता है
जो खुशबू अपनी फैलाता है
और टूट कर बिखर जाता है
लफ्ज़ तुम्हारे मेरे दिल को लबरेज कर दें
और सिरहन से भर दे मेरी रूह को
कुछ पंक्ति दिल से—–
“यूँ ना रहा करो खामोश,
कुछ बोल भी दिया करो!
नहीं आएंगे वापस लौट कर,
तेरी इन खामोशियों को सुनने के लिए”!!
गुंजन शिशिर
वृन्दावन, उत्तरप्रदेश