आरती करो माँ श्री लक्ष्मी की। आरती करो माँ श्री लक्ष्मी की।।
सागर से निकली हैं माता, कमल पुष्प पर सदा विराजें।
नवल नित्य शोभा है माँ की, दोनों हाथ कमल-दल साजें।
भक्तों पर सुख-संपदा लुटातीं, पोषणकर्ता हैं धरती की।।
आरती करो माँ श्री लक्ष्मी की। आरती करो माँ श्री लक्ष्मी की।।
जिस घर है माँ वास तुम्हारा, सुख-वैभव दौड़े आते हैं।
नर-नारी आबाल वृद्ध सब, नीति-मार्ग चलते जाते हैं।
सकल विश्व में तुम्हीं व्याप्त हो, जीवन हो तुम ही जगती की।
आरती करो माँ श्री लक्ष्मी की। आरती करो माँ श्री लक्ष्मी की।।
तुम यदि कृपा करो हे माता, काम सकल पूरे हो जाएँ।
मिले अगर वरदान तुम्हारा, दुःख-दारिद्र्य निकट नहीं आएँ।
करते हैं आह्वान तुम्हारा, विपदा हर लो मातु सभी की।
आरती करो माँ श्री लक्ष्मी की। आरती करो माँ श्री लक्ष्मी की।।
शुद्ध आचरण, धर्मभीरु-जन पाल रहे अपना-अपना व्रत।
उन पर भी माँ ममता रखना, जो कर्मठ हैं नीति-नियम रत।
रहे नहीं कोई भी वंचित, याद रहे माँ इस विनती की।।
आरती करो माँ श्री लक्ष्मी की। आरती करो माँ श्री लक्ष्मी की।।
दुष्ट पापियों के घर अकसर, जगमग रोशन रहते हैं माँ।
किन्तु बहुत-से बच्चे तेरे, दुख जीवन भर सहते हैं माँ।
जग-पालक जगदीश संग माँ, हरना सब दुख-दर्द गरीबी।।
आरती करो माँ श्री लक्ष्मी की। आरती करो माँ श्री लक्ष्मी की।।
हम भूखे तेरी ममता के, माँ! हम सब तेरे शरणागत!
भाव-भजन, नैवेद्य, पुष्प, फल, तन-मन-धन से हैं पूजारत।
तेरा यदि आशीष मिले माँ! और कामना नहीं किसी की।
आरती करो माँ श्री लक्ष्मी की। आरती करो माँ श्री लक्ष्मी की।।
हे माँ! अब तो आ जाओ तुम, बच्चों के संत्रास हरो माँ।
जहाँ गरीबी का डेरा हो, हर उस घर में वास करो माँ।
आशाएँ पूरी कर दो माँ, पूजा सफल हो दीवाली की।
आरती करो माँ श्री लक्ष्मी की। आरती करो माँ श्री लक्ष्मी की।।
निवेदक- डॉ. रामवृक्ष सिंह
वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई