
सांसों का कोई नाम ना था
इश्क ने तेरा नाम हर साँस में गूंथ दिया
टूट से गये कई
शिकवे- शिकायते
मिट से गये सारे फासले
शिशिर बन करके
जो आए उपवन में मेरे
छा गई बहारें अलसाये से उपवन में
महक से गए सारे रास्ते
तितलियों का फूलों पर गुंजन
फिर होने लगा
डगमगाई सी कश्ती को
जैसे सहारा मिला पतवार का
टकटकी सी सजाई आहटों को
जैसे विराम मिला
तुम्हारे आने से
तप्त होकर बेसुध सी चल रही सांसो को
सहारा मिला तुम्हारे स्पंदन का
काश, यह सिलसिला
यूं ही अनवरत
चलता रहे जीवन भर
फिर सिर्फ आना हो तुम्हारा
कभी न जाने वाले गमन के लिए।
#स्मिता जैन