साहित्य बिक रहा…

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सोना चांदी हीरे मोती,
तो तुम पहले बेच चुके।
बचा हुआ था साहित्य,
जिसको अब तुम बेच रहे।
सब कुछ खत्म हो जायेगा,
बस थोड़ा सा इंतजार करो।
वो दिन भी अब दूर नहीं,
जब स्वंय को ही खोजोगे।।
क्योंकि,
अब तो साहित्य बिक रहा,
गली मोहल्ले और चौराहो पर।
कोई दूजा नहीं बेच रहा,
बेच रहे है, साहित्य के ठेकेदार ही।
अब तुम ही बतलाओ,
कैसे सुरक्षित रह पायेगा?
साहित्य इन लोगों के हाथों में।।

स्वार्थ में लील हैं मानो,
चिंता नहीं हैं साहित्य की।
बस पैसे की दरकार इन्हे है,
तो बेच खाओ तुम साहित्य को।
क्योंकि,
साहित्य से कुछ नहीं है लेना।
बस चाहत है पैसे और नाम की।।

किस हालत में पहुंच दिया,
हमने हिंदी साहित्य को।
कोई और नहीं दोषी इसका ,
स्वंय बनाये हमने हालत ये।
क्योंकि,
हम खुद भकक्ष बन गए,
अपने ही साहित्य के।
और कितना गिराओगें,
अपने साहित्य के नाम को।।

जय जिनेन्द्र देव
संजय जैन (मुम्बई)

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।