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शह कभी मात पर लिखो यारों
मुद्दे की बात पर लिखो यारों
कैसे कटते हैं गरीबों के दिन
कैसे कटती,रात पर लिखो यारों
तूफान कहीं , कहीं पर सूखा है
कुछ तो बरसात पर लिखो यारों
चोर उचक्कों का क्यों जमघट हैं
बदले ख़यालात पर लिखो यारों
रोटी के टुकड़ों कोई तरसता है
सहमे हुए जज्बात पर लिखो यारों
हो कलमकार तो लेखनी की कसम
मुल्क के हालात पर लिखो यारों
–किशोर छिपेश्वर”सागर”
बालाघाट
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