शर्मसार

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शर्मसार हुई मानवता,ये कैसा कलयुग आया है,
बेटियों पर मंडरा रहा ,हरपल डर का साया है।

जब ,जहां, जैसे चाहा,बेटियों संग खिलवाड़ किया,
करके बेआबरू उनको,इंसानियत को शर्मसार किया।

कभी आपसी रंजिश में और कभी यूं ही दिल्लगी में,
करके निर्वस्त्र मासूमों को, मिलकर दुष्टों ने नोंच लिया।

कभी खेतों , जंगलों में, कभी चलती गाड़ी में ,
निर्ममता से दरिंदों ने, बेटियों का शिकार किया ।

कितनी रोई तड़पी होंगी ,ना जाने कितनी निर्भया,
हवस के भूखे भेड़ियों को, जरा ना आई उनपर दया।

तृप्त हो जाने पर भी ,मासूमों को यूं ही नहीं बक्षते हैं,
तोड़ हड्डियां काट जीभ को , हदें पार सब करते हैं।

सोच कर जिस मंजर को, रूह सबकी कांप जाती है,
अंजाम देने में इन दरिंदों को, जरा शर्म नहीं आती है।

जिन जातियों के लोगों को ,ये छूना पाप समझते हैं ,
मिलकर उन्ही से गैंगरेप, करने में नहीं झिझकते हैं।

क्यों याद ना आती जरा भी इनको ,अपनी मां बहनों की,
अा सकती है कभी भी बारी, इनकी भी मां बहनों की।

हवस के नशे में होकर चूर, खुद को भगवान समझते हैं,
अपने घिनौने कुकृत्य के ,अंजाम से क्यों नहीं डरते हैं।

हर निर्भया की श्रद्धांजलि में ,हम कब तक कैंडल जलाएंगे,
कब हम सब मिलकर इस कृत्य का, कठोर कानून बनाएंगे।

जैसी करनी वैसी भरनी का ,नियम हमें अपनाना होगा,
दरिंदों को दरिंदगी का , हम सबको सबक सिखाना होगा ।

चूल्हे चौके संग ,बेटियों को आत्मरक्षा के गुर सिखाना है,
बेटा बेटी का भेद त्याग, बेटी को शक्तिस्वरूपा बनाना है।

ना होगी यदि बेटी जग में, घर में बहू कहां से लाओगे,
बेटा बेटा करते हैं सदा जो, क्या बेटों से वंश चलाओगे।

मां ,बेटियों और बहनों पर , बहुत हो चुका अत्याचार,
नारी शक्ति नहीं है अबला ,करेगी अब वो तुम पर वार।

शर्म करो ओ हैवानों ,इंसानियत का जरा ख्याल करो,
बनकर दैत्य ,राक्षस जग में ,तुम यूं ना बवाल करो।

अा गई यदि नारी जिद पर, नामो निशा ना तेरा होगा,
ना चाहे यदि नारी जो,इस धरती पर कैसे पैदा होगा।

रचना
सपना (स० अ०)
जनपद औरैया

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