उलझ गया हूं खुद मै,खुद की तलाश में

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चल पड़ा हूं राहो में,खुद की तलाश में।
उलझ गया हूं ख़ुद मै,खुद की तलाश में।।

झाक लेता अगर तू,अपने आपकेअंदर में।
इधर उधर न भटकता तू खुद की तलाश में।।

तलाश किसे करता है जो तुझे नहीं मिलता।
खुद को तू तलाश,जो तेरे में ही अंदर रहता।।

तलाश के चक्कर में,तलाशी लेता है दूसरों की।
लेते तेरी भी तलाशी जैसे तू लेता है दूसरों की।।

छोड़ दे तलाशी दूसरों की,ये तेरा काम नहीं।
खुद में मस्त रह तू,यही काम है सबसे सही।।

तलाश करता है मृग खशबू को इधर उधर।
मत बन मृग जैसा,न तलाश कर उधर उधर।।

आर के रस्तोगी
गुरुग्राम

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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