उसके होंठों को यूँ छूता चला गया….

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salil saroj
उसके होंठों को यूँ छूता चला गया
बहुत प्यासा था,मैं पीता चला गया
उनकी निगाहों में कोई तो समंदर है
उभरना चाहा तो खुद को डुबोता चला गया
जिस्म हो कि खुशबू से भरे कई प्याले
सर से पाँव तलक़ उसमें भिंगोता चला गया
जुल्फें खुलके गिरी मुझपे कुछ इस कदर कि
मैं उनके तस्सवुर में समाता चला गया
कमर थी कि नदी की बलखाती राहें कोई
मैं सफर में तो रहा,पर मंज़िल भुलाता चला गया
सीने में दफ़्न थी सदियों से कोई मीठी आग जैसे
जो जला एक बार तो फिर खुद को जलाता चला गया
#सलिल सरोज

परिचय

नई दिल्ली
शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011),  जीजस एन्ड मेरीकॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)।

प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका”कोशिश” का संपादन एवं प्रकाशन, “मित्र-मधुर”पत्रिका में कविताओं का चुनाव।सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश।

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