लड़ता था आम के लिए

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amit shukla

अब बदल भी लोगे निगाहें कोई हैरत नहीं।

प्यार की लाज क्या रखें जिन्हें गैरत नहीं।

 

कुछ रिश्ते संभालकर रखें वक्त बेवक्त को।

काम अपने ही आते हैं कोई दौलत नहीं।

 

प्यास चीखती रही एक बूँद न मिली।

अब सागर भी लाओगे तो

जरूरत नहीं।

लड़ता था आम के लिए

और खास हो गया।

खादी पहन मुमकिन नहीं,

शोहरत नहीं।

बात दिल की हम जुबां बोल देते हैं।

                                                                          #अमित शुक्ला

matruadmin

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