
भूत – भविष्य की चक्की में पिस रही ज़िन्दगी,
कौन समझता है- वर्तमान का महत्त्व
दुख – दर्द की कहानी बन जाए उपन्यास,
कौन समझता है – मुस्कान का महत्त्व
जमाने की खुशी हेतु जान दे दी उसने,
कौन समझता है यहां जान का महत्त्व,
पसीने की खुशबू से भी आती है बदबू
कौन समझता है- किसान का महत्त्व,
मुफ्त में मिली गीता सिसक रही कोने में,
कौन समझता है यहां ज्ञान का महत्त्व
ओह! मर गयी मानवता भौतिकता के पीछे,
कौन समझता है – ईमान का महत्त्व
‘सावन’! पावन है ज़िन्दगी जो मुफ्त में मिली,
कौन समझता है- जीवनदान का महत्त्व
स्नेह, सम्मान, सदाचार से सुसज्जित,
कौन समझता है- इंसान का महत्त्व,
मुफ्त में मिले महत्त्व का समझना महत्त्व,
कौन समझता है जी! महत्त्व का महत्त्व
उतना ही देना, हो जितना महत्त्व
कहीं घट न जाए जी! महत्त्व का महत्त्व
सुनील चौरसिया ‘सावन’
अरुणाचल प्रदेश