पर्यावरण से मिलता सभी को निःशुल्क लाभ

0 0
Read Time8 Minute, 23 Second
aashutosh kumar
मानव जीवन के लिए नींद , शांति , आनन्द , हवा , पानी , प्रकाश और सबसे ज्यादा हमारी सांसे, बेहद जरूरी है क्योंकि इनके बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। अनमोल तो ये हैं ही, पर ये निःशुल्क भी है,यही वजह है कि लोग इसकी अहमियत को अक्सर ईश्वर की कृपा समझकर भूल जाया करते हैं। जरा सोचिए प्रकृति से प्राप्त लाभ अगर पैसो से खरीदना पडे तो क्या जीवन संभव है हवा जल प्रकाश बारिश जो सभी को समान रूप से प्राप्त होती है उसके प्रति गंभीर कब होंगे ? चंद सजावट के लिए साफ सफाई के लिए कब तक पेडो को काटते रहेगे।पर्यावरण की देखरेख के लिए कोई ठोस और सुदृढ योजना आखिर कब लायी जाएगी।ऐसे कई प्रश्न है जिनके निदान ढूंढे जाने हैं।जबकि असंतुलित होते जलवायु लगातार जीवन के लिए चिंता का शबब बनता जा रहा है।
मानव विलासिता और प्रगति के अंधे दौर में प्रकृति को भूलने लगा है।थोडा सा वक्त पर्यावरण को भी चाहिये यही सोच सभी के दैनिक जीवन में आए और पर्यावरण के प्रति लोग जागरूक हों इसलिए पर्यावरण दिवस को अधिक महत्व दिया जाने लगा है। विभिन्न सेमिनारो लेखों कविताओं के जरिए भी पर्यावरण के प्रति गहरी चिंता व्यक्त की जाती है।
पर्यावरणीय सुरक्षा उपाय को दर्शाने के लिये साथ ही पर्यावरण सुरक्षा के बारे में लोगों के बीच अधिक जागरुकता बढ़ाने में लगभग पाँच दशक के गहन परीक्षण और शोध के जरिये भी आज तक हमलोग उपाय ही ढूँढ रहे जबकि पर्यावरण सुरक्षा का हल ढूँढा जाना अति आवश्यक हो गया है।पानी का घटता लेयर, मानसून कम होना, असमय बारिस ओलावृष्टि सूखा, भूकंप बढती गर्मी और ग्लेशियर का तेजी से पिघलना आदि चिता का सबब बनता जा रहा है ।
  धरती पर बढ़ती जीवन से उत्पन्न गंदगी, बढता रासायनिक उपयोग,सैन्य परीक्षण, गाडियो का धुआँ और लापरवाही का सिस्टम जैसे अनेक ऐसे कारण है जो धीरे-धीरे जीवन को मौत के करीब ले जाती हुई प्रतीत होती है।
इसलिये पूरे विश्व भर के लोगों के द्वारा एक वार्षिक कार्यक्रम के रुप में हर साल पर्यावरण दिवस को मनाया जाता है।  लगभग 195 देशों के द्वारा वैश्विक आधार पर सालाना पर्यावरण दिवस 05 जून को मनाया जाता है।
    दुनिया भर से मिली रिपोर्ट ने वायु प्रदूषण पर गहरी चिंता जाहिर की है इसके अनुसार हमलोग इतनी जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं  कि हमारी उम्र दिन प्रतिदिन कम हो रही है।प्रदूषण का स्तर प्रायः सभी शहरो में बढ़ रहा है शहरी क्षेत्रो मे गाडियो, ईंट भट्ठो, डीजल जेनरेटरों, से उत्सर्जित धुएँ सडक ची धूल तो ग्रामीण क्षेत्रो मे रसोई के ईंधन,वहीं गोबर की कम उपयोग होने से स्वच्छ हवा प्रायः दूर होती जा रही है।वायु प्रदूषण आने वाले समय में विपत्ति के समान सबका मुँह चिढाता नजर आ रहा है।
फेफड़ो से सम्बन्धित गंभीर रोग वायु प्रदूषण के कारण होते हैं।स्वास्थ्य एवं जनसंख्या मंत्रालय के अनुसार पहले के दशक में वायु प्रदूषण विकलांगता के दसवां कारण होता था लेकिन अब यह दूसरा बडा कारण बन गया है।
जल प्रदूषण भी इससे अछूता नही है शुद्ध पेयजल से जूझ रहे अनेक शहर अपनी प्यास बुझाने के लिए गंदे पानी पीने को मजबूर है हालत यहां तक पहुँच गयी है कि कई जानलेवा रोग का कारण अशुद्ध जल का सेवन बन गया है लोग पलायन करने को विवश हो रहे हैं।
बढ़ती आबादी घटती जमीन और वनो का लगातार कटाव ने संतुलन बिगाड़ कर रख दिया है। विलासिता और विज्ञान पर निर्भरता ने लोगो को प्रकृति से दूर होने पर मजबूर कर दिया। बढता शहरीकरण और घटता गाँव ने लोगो को रोजी रोटी के लिए शहर में रहने पर मजबूर किया साथ ही प्रकृति सेवा से भी मरहूम किया है जिसका परिणाम अब स्पष्ट तौर पर दिख रहा है ।गंदगी का अम्बार लगे शहर के चौक चौराहे दूषित जल दूषित नदियाँ जो शहर की गंदगी नित्य निगल रही है आखिर कब तक स्वच्छ रह सकती धीरे-धीरे जहर बनने की राह पर अग्रसर है ।
आम तौर पर देखा गया है कि गाँव के लोग प्रकृति प्रेमी होते है वे गाँव में रहकर वृक्ष लगाते रहते हैं और सेवा भी करते हैं ताकि हर मौसम का फल उन्हें मिल सके लेकिन,शहर में वे ऐसा नही कर पाते न ही उनके पास जमीन उपलब्ध हो पाती है।उल्टा शहर आने पर गाँव में लगे वृक्ष भी सेवा अभाव के कारण सूख जाते है या खराब हो जाते हैं । प्रदूषण नियंत्रण के लिए पुनः गाँव का सदृढिकरण आवश्यक है शहर पर बढता बोझ को कम करना एक अच्छा विकल्प है लेकिन इसके लिए गाँव में ही रोजगार के विकल्प भी तलाशने होगे जो दूर-दूर तक नजर नही आती।अतःप्रकृति से मुफ्त में सभी को समान रूप से मिलने वाले जीवन के पाँच प्रमुख तत्व जिनके, किसी एक के बिना जीवन संभव नही है उनका संरक्षण करना और संरक्षण के प्रति जागरूक करना प्रत्येक नागरिक का पहला नैतिक कार्य व जिम्मेदारी होना चाहिए।
——————————————-
पर्यावरण
————–
प्रगति है प्यारी तो,
वृक्ष से प्यार करो।
निःशुल्क सेवा देता है,
सब स्वीकार करो।।
जल जमीन हवा और प्रकाश,
जीवन के है मुख्य आधार।
चकाचौंध में खोकर न,
इन्हें बर्वाद करो।।
यह न करता भेद किसी से,
राजा हो या रंक।
समान अधिकार देता सबको
मानव हो या जीव-जन्तु।।
दिल में ठान लो अब,
दस पेड लगाओ सब।
संतुलन बिगड़ रहा है
संभल जाओ अब।।
ऐसा न कभी दिन आए
पीठ पर हवाओ के सेलेन्डर आए।
पानी मिलें सिर्फ दुकानो में
कैसे जीवन संभल पाए।
कालचक्र से भी बडा है
यह हमारा आपदा
समय से हल निकाला जाए
फिर निःशुल्क सेवा पाए।

“आशुतोष”

नाम।                   –  आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम –  आशुतोष
जन्मतिथि             –  30/101973
वर्तमान पता          – 113/77बी  
                              शास्त्रीनगर 
                              पटना  23 बिहार                  
कार्यक्षेत्र               –  जाॅब
शिक्षा                   –  ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन                 – नगण्य
सम्मान।                – नगण्य
अन्य उलब्धि          – कभ्प्यूटर आपरेटर
                                टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य   – सामाजिक जागृति

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

अनूठी बस

Tue Jun 4 , 2019
सकारात्मकता का भाव जगाने चरित्र निर्माण की बात समझाने स्वच्छता के मायने बतलाने आ रही है एक बस अनूठी युवाओं की उसमे टोली है भाई बहनों की गजब जोड़ी है सन 2017 से बस चली हुई है दक्षिण भारत से होकर आई हुई है ब्रह्माकुमारीज का बैनर लगा हुआ है […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।