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जिस प्रकार
बहरूपिया
बदल लेता है नित
अपना रूप
इसी प्रकार
प्रकृति भी
लेती है बदल
नित नया रूप
कभी हवा सुहावनी
कभी धूल भरी आंधी
कभी शीत-लहर
कभी झुलसाती लू
कभी धुंध
कभी बरसात
कभी ओलावृष्टि
कितने रूप
बदलती है प्रकृति
विनोद सिल्ला
फतेहाबाद (हरियाणा)
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