जीवन में रस घोले हिन्दी

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मन की गाँठें खोले हिन्दी।
जीवन में रस घोले हिन्दी।।

मैं भी बोलूँ, तुम भी बोलो।
मन से जन-जन बोलें हिन्दी ।।

जीवन में रस घोले हिन्दी।

धरती बोले, अम्बर बोले।
सरिता बोले, सागर बोले।।
बूँद बोले, महासागर बोले।

पवन बोले, सुमन बोले।
झूम-झूम के ‘सावन’ बोले।

मन का ताला खोले हिन्दी।
जीवन में रस घोले हिन्दी।

माँ है हिन्दी, बहन है हिन्दी।
हमारी रहन-सहन है हिन्दी। ।

रस से भी है मीठी हिन्दी
फिर भी हमसे रूठी हिन्दी –

हम गैरों को गले लगाते हैं
अपनों को समझ न पाते हैं

हिन्दी माँ सब कुछ सहती है
और बच्चों से कहती है-

सीख सको तो सीखो,
गाओ शत्-शत् भाषी गीत।
लेकिन भूलकर भी मत भूलना
हिन्दी और संस्कृत

जो अपनों को भूल जाता है
उसे संसार भूल जाता है

जो अपनों को ठुकराता है
वह शरण कहाँ पाता है ?

भारत माँ का सुहाग है हिन्दी
चूड़ी, कंगन और है बिन्दी

हिन्दी में पढ़ो, हिन्दी में लिखो
हिन्दी में गाओ गीत।
‘सावन’! समृद्ध भाषा-भाव निरेख
मुस्कुराये संस्कृत ।।

तनोपवन में मन-मयूर
झूम-झूमकर बोले हिन्दी ।
जीवन में रस घोले हिन्दी।।
जीवन में रस घोले हिन्दी।।

सुनील चौरसिया ‘सावन’
कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)

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