
पिछले आधे घंटे से माँ पूजा, पाठ,अगरबत्ती, माला,और आरती में लगी हुई है।बचपन से मैं देखता आ रहा हूँ। हर रोज बिना नागा किये, बीमार होने के बावजूद माँ ने कभी भगवान की भक्ति मे कोई कमी नहीं छोड़ी।भगवान का स्नान , मंदिर की सफाई, प्रसाद से लेकर उन्हें सुलाना ,झूला झूलाना….जाने क्या-क्या करती रहती है….पर बदले में क्या मिला माँ को….न पैसे का सुख ,न पति का सुख, वैध्वय से युक्त जीवन और बेरोजगार बेटा….सच कहूँ जब सुबह की आँख खुलती है ये मन्दिर की घंटियां मेरे समूचे वजूद पर हावी हो जाती है।
चीख-चीखकर कहना चाहता हूँ – खोखली मन्नतों का बोझ कब तक उठाओगी माँ, कब तक….।अब तुम्हारे साथ तुम्हारा भगवान भी बूढा हो चला है माँ ….मेरी मानों भगवान को रिटायरमेंट दे दो माँ…रिटायरमेंट….।
अचानक आँख खुलती है पसीने से तरबतर मैं उठ बैठता हूँ ….पर मंदिर घंटी और आरती की आवाज तो सच में आ रही है तो फिर हकीकत क्या है और सपना क्या….समझ नहीं पाता….कहीं सच में भगवान अपना रिटायरमेंट तो नहीं माँग रहे थे….क्या प्रलय होने वाली है….मैं दौङ़कर जाता हूँ और माँ के साथ घंटी बजाने लगता हूँ….माँ हक्की-बक्की कभी मुझे और कभी अपने भगवान को देख रही है….।
डॉ पूनम गुजरानी
सूरत