
रो पड़ता हूं जब पढ़ता हूं अख़बारों को।
रों पड़ता हूं मै,जब पढ़ता हूं अख़बारों को।
कहां छिपे है ये नेता,पूछता हूं इन दीवारों से।।
दीवारें भी गुमसुम खड़ी है,कुछ न बोल पाती है।
देख कर घर के दृश्यों को,वे भी आंसू बहाती है।।
घर घर शोक दिवस है,मृत्यु ने डेरा डाला है।
पुत्र मां से विदा ले रहे है जिसने उनको पाला है।।
ऐसे काले दिवस,कभी सुनने में भी नहीं आए है।
इनको आंखो से देख रहे,जो देखने में आए है।।
हे ! परम पिता परमेश्वर,ये कष्ट कम कर सकते हो तुम।
मानव कोरोना से परेशान है,इसको बुलालो अब तुम।।
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम