तलाशती हूँ अब भी,
खामोशियों में गूंजती
तेरी वो आवाज़
जो दे जाती थी
राहत…..।
बिना कुछ कहे
आ जाता था
सुकून…
बिना सहलाए भी,
लग जाता था मरहम।
जिंदगी का हर ज़ख्म
भर जाता था
आ ही जाती थी
चेहरे पर इक हँसी
तेरे चेहरे की सौम्य मुस्कुराहट…..
तलाशती हूँ अब भी….।
तलाशती हूँ अब भी…,
तेरे वजूद की गर्मी
तेरे अल्फाज़ की सरसराहट
तेरे तेजस्वी चेहरे का नूर
जो सहज ही
रोशन कर देता था
मेरा कर्म पथ
तेरी आँखों के उजाले,
मेरे लिए
सूरज की मानिंद
जगमगाता ओजस……
तलाशती हूँ अब भी….।
तलाशती हूँ अब भी,
तेरी वो शरारतें
तेरा वो नन्हें बच्चों-सा
बच्चों के संग खेलना,
तेरा वो हर जतन
कि हँसते रहें हम
तेरा वो स्वयं की
पीड़ाओं को दबा लेना,
तेरा वो संरक्षण
तेरा वो लुटा देना
सर्वस्व……
हे पिता……….
तलाशती हूँ अब भी…..
तलाशती हूँ अब भी….।
#प्रियंका बाजपेयी
परिचय : बतौर लेखक श्रीमती प्रियंका बाजपेयी साहित्य जगत में काफी समय से सक्रिय हैं। वाराणसी (उ.प्र.) में 1974 में जन्मी हैं और आप इंदौर में ही निवासरत हैं। इंजीनियर की शिक्षा हासिल करके आप पारिवारिक कपड़ों के व्यापार (इंदौर ) में सहयोगी होने के साथ ही लेखन क्षेत्र में लयबद्ध और वर्ण पिरामिड कविताओं के जानी जाती हैं। हाइकू कविताएं, छंदबद्ध कविताएं,छंद मुक्त कविताएं लिखने के साथ ही कुछ लघु कहानियां एवं नाट्य रूपांतरण भी आपके नाम हैं। साहित्यिक पत्रिका एवं ब्लॉग में आपकी रचनाएं प्रकाशित होती हैं तो, संकलन ‘यादों का मानसरोवर’ एवं हाइकू संग्रह ‘मन के मोती’ की प्रकाशन प्रक्रिया जारी है। लेखनी से आपको राष्ट्रीय पुष्पेन्द्र कविता अलंकरण-2016 और अमृत सम्मान भी प्राप्त हुआ है।