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आरक्षण से देश
गुलाम हो रहा है,
जो देखो वही आज
आरक्षण माँग रहा है।
देश के स्वार्थी नेताओं ने
आरक्षण की गंदगी को,
अब तक पाल रखा है।
एक कहावत है-गंदगी में
पत्थर फेंको,उल्टे
अपने सिर पर उचटती है,
वही कहावत आज के
समय चरितार्थ हो रही है।
आजकल जो देखो वही,
आरक्षण की माँग कर रहा है
मुफ्त में जो मिल रहा है।
पहले सरकारों से माँगते हैं,
नहीं मिलने पर हो-हल्ला
बहुत ही शोर मचाते हैं।
फिर हड़ताल-आन्दोलन,
सरकारी सम्पत्ति को तोड़-
फोड़कर आग लगाते हैं।
लाखों-करोड़ों की सम्पत्ति,
को नुकसान पहुंचाते हैं।
पुलिस-सरकार लाठीचार्ज
बन्द करे,मानव अधिकार
वाले अपनी टाँग अड़ाते हैं।
दाल-भात में मूसलचन्द बनते हैं,
आरक्षण से देश को गुलाम
बनाने में मदद करते हैं।
आरक्षण की ये बैसाखी,
एक दिन देश को फिर
किसी का गुलाम बनाएगी,
आरक्षण को समाप्त नहीं
किया तो जल्दी ही वो
नौबत देशवासियों के सामने आएगी।
आरक्षण वाले जो ऐश कर रहे हैं,
एक दिन चक्की पीसेंगें,
देश की आमजनता को ले डूबेंगें।
नेताओं को-अदालत को आगे आकर
इसकी पहल करनी चाहिए,
जाति-धर्म-महिला चुनाव
गरीबी सभी प्रकार का देश से
आरक्षण समाप्त होना चाहिए।
इसी में भलाई है,यही सच्चाई है॥
#अनन्तराम चौबे
परिचय : अनन्तराम चौबे मध्यप्रदेश के जबलपुर में रहते हैं। इस कविता को इन्होंने अपनी माँ के दुनिया से जाने के दो दिन पहले लिखा था।लेखन के क्षेत्र में आपका नाम सक्रिय और पहचान का मोहताज नहीं है। इनकी रचनाएँ समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं।साथ ही मंचों से भी कविताएँ पढ़ते हैं।श्री चौबे का साहित्य सफरनामा देखें तो,1952 में जन्मे हैं।बड़ी देवरी कला(सागर, म. प्र.) से रेलवे सुरक्षा बल (जबलपुर) और यहाँ से फरवरी 2012 मे आपने लेखन क्षेत्र में प्रवेश किया है।लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य, कविता, कहानी, उपन्यास के साथ ही बुन्देली कविता-गीत भी लिखे हैं। दैनिक अखबारों-पत्रिकाओं में भी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। काव्य संग्रह ‘मौसम के रंग’ प्रकाशित हो चुका है तो,दो काव्य संग्रह शीघ्र ही प्रकाशित होंगे। जबलपुर विश्वविद्यालय ने भीआपको सम्मानित किया है।
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