कौन  समझाए इन्हें

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rakesh dube

चाँदनी  रात  के   दामन   से  सितारा लेकर,

कोई आया है मेरे  घर में उजाला लेकर।

आग  दुनिया  में  लगाने  के  लिए काफ़ी हैं,

अश्क ठहरे हैं जो पलकों का किनारा लेकर।

इश्क़ परवान  चढ़ेगा कि नहीं रब जाने,

हम तो निकले हैं मुहब्बत का इरादा लेकर।

टाल देते हैं हर  इक  बात वो कल पर यारों,

लौट आता  हूँ मुलाक़ात  का  वादा लेकर।

ग़म न बाँटे  हैं ज़माने में  कोई भी दिल के,

मैं  कहाँ  जाऊँ  बता ज़ख़्म  ये ताजा लेकर।

बात हर सिम्त छिड़ी आज यहाँ रोटी की,

लोग बैठे  हैं  ख़यालों   में  निवाला लेकर।

लोग  दीवार उठाने  में   लगे   हैं   सारे,

कौन  समझाए इन्हें नाम ख़ुदा का लेकर।

लोग दीवाना  समझते हैं सभी ‘गुलशन’ को,

जब कभी  हँसता है वो नाम तुम्हारा लेकर।

मैने देखा चौंक,अरे क्या बोली पत्नी।

                                                                 #राकेश दुबे ‘गुलशन’

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