
असमंजस में आज फिर वह माँ के पास उनके आँचल के पीछे छिपने के लिए उनके दरवाजे पर खड़ी थी।
उसे पता था उसके पिता का क्रोध.. वे उससे न ही बात करेंगे न ही उसे अपने घर में स्थान देंगें।
उसे भरोसा था कि माँ फिर एक बार उसे बचपन की तरह ही अपने पीछे छिपा कर पापा के गुस्से से बचा ही लेंगी।
पर इस बार अपराध बड़ा था।
चार साल के लिव इन के बाद विवेक उसकी गोद में दो साल की नम्रता को छोड़ कर अपने वादों की तरह ही चला गया था।
उसने अपनी मर्जी से ही विवेक के साथ इस सम्बंध को स्वीकार किया था माँ बाप की अनिच्छा के बावजूद।
तब…
पढ़ी लिखी, नौकरी पेशा उसे इस सम्बन्ध में अपने जीवन की सफलता ही नजर आ रही थी।
अब…
अकेली वह…
नम्रता को किसके पास छोड़कर नौकरी पर जाए..??
क्रेच और दाई दोनों के पास न प्यार था न संस्कार।
पर अब वह भी माँ थी और उसके पास केवल बचा था अपनी माँ के प्यार पर भरोसा..।।
कनक हरलालका
परिचय:
कनक हरलालका
धूबरी (असम)
लेखन क्षेत्र :- लघुकथा, कविता , गजल, निबंध