
गुरव समाज द्वारा अपनी बोली और संस्कृति को सहेजने के लिए गुरव संस्कृति ग्रन्थ का निर्माण किया गया था। इसी ग्रन्थ के सम्पादक मनीष निमाडे को सोमवार को महाराष्ट्र के पुणे में आपना शोध लेख प्रस्तुत करने का अवसर मिला। युनेस्को आधारित अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा आयोजित प्रोग्राम मेरी सांस्कृतिक पहचान – मेरा सतत विकास 2020 द्वारा पूरे भारत से शोध लेख आमंत्रित किये गए थे । जिसमे पूरे मध्यप्रदेश से उनका चयन हुआ था। गुरव संस्कृति एवं बोली विषय पर मप्र से एकमात्र सदस्य के रूप में गुरव समाज के मनीष निमाडे के लिखित शोध लेख का चयन हुआ ।जिसमें पूरे भारत से प्रतिभागी शामिल हुए थे । मध्यप्रदेश से मनीष निमाडे ने अपने शोध लेख की प्रस्तुति दी।गुरव समाज के लगभग 56 सदस्यों के अथक प्रयासों कठिन परिश्रम से एव सभी गुरव समाज के योगदान से ग्रन्थ का निर्माण सम्भव हो पाया था। जिसके सफल प्रकाशन करने के फलस्वरूप यह उपलब्धि मनीष निमाडे के जरिये गुरव समाज को प्राप्त हुई है।समाज के हेमन्त मोराने ने जानकारी देते हुए बताया कि बहुत ही गर्व की बात है कि पूरे मध्यप्रदेश से गुरव समाज के श्री निमाडे जी द्वारा युनेस्को अंतरराष्ट्रीय संस्था गांधी भवन कोथ रुड पुणे महाराष्ट्र में 04 दिवसीय आयोजन के अंतर्गत अपने शोध लेख की प्रस्तुत वाचन किया त्वपश्चत श्री निमाडे को इस हेतु प्रमाण पत्र एवं अन्तर्राट्रीय परिषद् JICH का प्रकाशित ग्रन्थ ,साहित्य स्मृति चिन्ह भी प्रदान किया गया।अंतर्राष्ट्रीय परिषद् में सहभागिता संपन्न करने के कारण इन्हें विश्व लोक साहित्य कांग्रेस की निशुल्क सदस्यता भी प्रदान की गयी। निमाडे जी का लेख JICH (जर्नल) में भी प्रकाशित होगा । पूर्व में भी इन्होंने इसी विषय पर आकाशवाणी में भी प्रस्तुति दी थी। मनीष निमाडे की इस उपलब्धि पर गुरव समाज और परिचितों ने और गुरव संस्कृति ग्रन्थ कोर टीम ने बधाई और शुभकामनाये दी ।