Read Time38 Second
पलकों के पट भिड़ जाने से,
निंदिया नहीं आया करती है।
ख्वाबों में प्रियतम आए फिर,
बिंदिया शरमाया करती है।।
रात-रात इक द्वन्द है चलता,
चद्दर,तकिया सब रूठे रहते।
रुक-रुक नयनों से वर्षा होती,
कुछ सपने बिखरे टूटे रहते।।
कभी खजुराहो मूरत सजती,
कभी प्रेमालाप चलता रहता है।
कभी-कभी गजरे की खुशबू,
तन-मन सब महका रहता है।।
कभी खनकती उनकी कंगन,
कभी छनकती है पायल भी।
कभी कान का झुमका झूमे,
नाचे फिर ये मन घायल भी।।
#स्वप्निल
Post Views:
476