घर को किया जो साफ आज तो
मन की दिवारें खुलती देखी,,,
बिखरी चिट्ठीयां देख पुरानी
दिल की कराहें हिलती देखी,,,
बरसो पहले के कुछ सपने जैसे
गिरकर टूट गए हों,,,
किसी की चाहत के अफसाने जैसे
मुझसे रूठ गए हो,,,
चिट्ठीयों के अक्षर धुंधलाए उन
जज्बातो का कोई मोल नही,,,
हर याद पे आह्ह है, इस कड़वाहट
में कोई मीठा बोल नही,,,
उसकी कसमें, उसके वादे, उसकी
तरह ही झूठे निकले,,,
इन चिट्ठीयों को पढ़ते पढ़ते कितने
आसूं खारे निकले,,,
कैसे कोई बदल के खुद को इतना
गिर सकता है,,,
स्वंय से लड़ कर आखिर कोई कैसे
जी सकता है,,,
इन चिट्ठीयों में बहुत सी ख्वाहिश
जो अभी तक बाकि है,,
इन चिट्ठीयों की कुछ गुजांईश
शायद अभी भी बाकि है,,,
सचिन राणा हीरो
हरिद्वार उत्तराखण्ड।
Read Time1 Minute, 5 Second