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कैसे कह दूँ अपने अंदर की बात।
छंट रही है धीरे-धीरे काली रात।।
परिश्रम कर खूब पसीना बहाया।
किन्तु मैं बदला ना मेरी औकात।।
राष्ट्रभक्ति हमेशा भारी राष्ट्रद्रोह पे।
तभी उनपे होती कष्टमय बरसात।।
भावुकता में बहते वे बाँके सपूत।
वश में न रहते देशभक्त जज्बात।।
त्याग देशभक्ति का दूसरा नाम है।
फाँसी चढ़ पाते सुनहरी सौगात।।
इंदु भूषण बाली
जम्मु-कश्मिर
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