
स्त्री का एक भी पल स्वयं का नहीं है ,
स्त्री जिसका कुछ भी नहीं है अपने लिए,
हमेशा सब कुछ किया जिसने सबके लिए,
जैसे पूरा आकाश मिल जाता है,
जब स्त्री को मातृत्व का सुख मिल जाता है,
उसका एकांत क्षण नहीं होता अपने लिए,
स्त्री जब मां बनती है,
न जाने कितने सपने बुनती है,
सब कुछ लुटा देती है औलाद पर,
अपना प्यार,अपना आज और कल,
अपने जीवन का हर क्षण हर पल
कहां से लाती है इतना त्याग,
इतना प्रेम इतना समर्पण,
क्या कुछ नहीं गुजरता है उस पर,
जब वह होती है उदास,
नहीं होता जब कोई उसके पास,
सुनने को उसकी तकलीफें उसकी ख्वाहिश,
बहुत कुछ दब जाता है, किसी कोने में,
जो नहीं दिखता उसे भी,
जो रहता है उसके सबसे करीब,
आखिर क्या मिलता है उसे स्त्री होकर
कितना कुछ पाना चाहती हैं वो आंखें
जो हमेशा दूसरों के लिए सपने देखतीं हैं,
सचिन राणा “हीरो”
हरिद्वार उत्तराखंड