दस्तक

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 shalini nagar
अपने पापा के साथ आज रुही जाने वाली थी,अपनी नानी के घर। गुलाबी फ्रॉक पहने हुए बेहद खूबसूरत लग रही थी रुही। पापा ने स्कूटर पर बिठाया, किक लगाई और लेकर चल दिए रूही को उसकी नानी के घर।
रुही को दादी ने तैयार किया था,पर दादी कुछ उदास थीं आज।थोड़ी चिढ़चिढ़ी-सी,रुही को तो नानी के घर जाना था न।रुही ने हाथ हिला के दादी को बाय कहा और पापा को जोर से पीछे से पकड़ के बैठ गई। रास्ते में रुककर पापा ने मिठाई खरीदी,पैकेट आगे स्कूटर के हुक पर टांगा,और फिर चल दिए।
रुही की नानी का घर उसके घर से महज ४ किलोमीटर दूर था। रुही अक्सर वहाँ जाना चाहती थी, पर पापा डाँटेंगे, यही सोचकर चुप रह जाती थी। रुही के पापा ने नानी के घर के सामने स्कूटर लगाई तो नानी बाहर आई उसे लेने, पर आज वैसा लाड़ नहीं किया,जैसा हमेशा करती थी।बस अंकिता मौसी दौड़कर आई और खेलने चलने को कहा। अंकिता मौसी रुही से मात्र सात साल बड़ी थी। सब अनमने से थे,थोड़े चिढ़चिढ़े से,पर रुही तो खेलने आई थी न। खेल के थक गई  तो रुही ने मौसी को कहा वापस चलने को। पंखे के नीचे बैठने का मन था रुही का।
सभी हॉल में ही बैठे थे। रुही के आते ही सब शांत हो गए। सोफे पर बैठी रुही कभी नानी को देखती, कभी पापा को और कभी नानाजी को।
पापा ने ही बात छेड़ी,-तो फिर क्या सोचा आप लोगों ने?’
नानी ने थोड़ी तल्खी से जवाब दिया,-‘आप पूछ किस मुँह से रहे हैं? मेरी लड़की तो संभाली नहीं गई,अब नतिनी भी नहीं संभल रही मेरी।
जितना भी जी पाई मेरी बेटी,परेशान ही रही। चौबीस साल की उम्र में कैंसर जैसी बीमारी लग गई उसको। इलाज नहीं करा सके आप। मेरी बेटी उस उम्र में चल बसी,जिस उम्र में लड़कियों की शादी होती है आजकल।’
‘मैं इसका सारा खर्च दूंगा’-पापा बोले।
नानाजी कहने लगे-‘खर्च देकर छोटा बनाना चाहते हैं आप हमें।’
आप शादी कर रहे हैं तो शर्त रख दीजिए कि,मेरी बेटी को कोई तक़लीफ़ न हो।
लड़की की जिम्मेदारी हम नहीं लेंगे भई।
मेरी अपनी ही तीन बेटियां थी न। एक आपके हवाले की थी,दूसरी की अभी तो शादी की है। अंकिता अभी बाकी है ब्याहने को।’
नानी कहने लगीं-‘कुछ तो संभालना सीखिए जीवन जी अब। हम लड़की की जिम्मेदारी नहीं ले सकते। कल को कुछ हो जाए तो सबसे पहले हक़ जमाने आप ही आएंगे।’
रुही हर उस चेहरे को देख रही थी,जो इतना प्यार जताते थे। उसे सिर्फ इतना समझ आ रहा था कि,उसके भविष्य ने एक डरावनी आहट दे दी है।
पापा ने स्कूटर स्टार्ट की तो रुही को आज बुलाना नहीं पड़ा..वो यंत्रवत-सी आकर पीछे बैठ गई।
अबकी बार उसने पापा को पीछे से पकड़ा नहीं था।
                                                                     #शालिनी नागर ‘रोशनी’
परिचय : शालिनी नागर झारखण्ड के देवघर स्थित आम बागान डाबर ग्राम
में रहती हैं। लेखन में  उपनाम ‘रोशनी’ है। आपने एमए(अंग्रेजी साहित्य)के साथ ही बीएड भी किया है। पेशे से शिक्षिका होकर लेखन,बागवानी में रुचि है। आपकी लेखन विधा-कविता,निबंध लघुकथा आदि है। आपकी रचनाएँ 
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।

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4 thoughts on “दस्तक

  1. सस्नेह शुभकामनाएं।
    भावनाओं को पकड़ कर लिखा, बहुत बहुत ही अच्छी कहानी।
    आगे भी ईन्तजा़र करेंगे।

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