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ऐसे ही मन से निखर-निखर
ऐसे ही शब्दों को पकड़-पकड़,
ऐसे ही प्यार में उछल-उछल
गीता का अंश हुआ प्रकट।
युद्धों के अक्षुण्ण जज्बात लिए
शान्ति की दीर्घ पुकार लिए,
मन मानव का जो बिखर गया
गीता में आकर ठहर गया।
पग-पग पर जो लिखा हुआ
भू-भागों में बंटा हुआ,
मानव की ऊष्मा तितर-बितर
गीता सी जब-तब हुयी प्रकट।
नदियों में घोर अँधेरा है
वृक्षों में डर बसा हुआ है,
शहरों में शोर जगा हुआ है
बोलों में मन बँटा हुआ है,
जहाँ देख न सके सही-सही
वहाँ गीता धीरे हुयी प्रकट।
#महेश रौतेला
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