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मेरी तो खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा, जब मेंने उसको फिर से देखा तो! मैं एक बार पहले भी उससे मिल चुका था और अब उसे दूसरी बार देख रहा था ! हम बस में साथ-साथ बैठकर गाँव गए थे ! बस में ही हमारी पहली मुलाकात हुई और दोस्ती हो गई थी! तब से मैं उसको बहुत मिस कर रहा था ! आज मैं दीदी को कॉलेज छोड़ने गया था कि जैसे गेट के पास पहुँचा, चार- पाँच लड़कियाँ खड़ी हुई थी! वहाँ पर मेरी नजर रेड ब्लैक सूट वाली, हाथ में पर्स लिए और हल्की सी मुस्कुराहट के साथ खड़ी हुई, आंखों में उम्मीदों की चमक लिये खड़ी लड़की पर पड़ी तो मेरी नजरें वही पर रुक गई! दीदी कॉलेज के अंदर चली गई! लड़की के ऊपर से मेरी तो नजरें ही नहीं हट रही थी लेकिन अब तक उसने मुझे नहीं देखा था ! अपनी फ्रेंड के साथ बातें करने में मशगूल हो रही थी, मैं सामने खड़ा हुआ था लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हो पा रही थी कि मैं उसके पास जाऊं और उससे बात करूं लेकिन वहाँ से जाने का मन भी नहीं कर रहा था ! बस में एक कवि की तरह कल्पनाओं में खोता जा रहा था, अचानक से उसकी नजरें मुझ पर टिकी और वह मुझे पहचान गई फिर उसने हल्की सी स्माइल दी मैं भी मुस्कुरा दिया! उसने अपनी फ्रेंड से कुछ बोला और मेरी तरफ बढ़ी मेरी तो धड़कन ही तेज हो गई थी पर उसकी मुस्कुराहट से तसल्ली भी थी! उसने पास आकर हाय बोला और कैसे हो ? कैसे आना हुआ? एक साथ इतने सारे प्रश्न दाग दिए, मैंने उसके प्रश्नों का जवाब दिया ! मैंने भगवान को थैंक्स बोला , आज फिर से मुलाकात करवा दी! उसके क्लास का समय हो रहा था तो उसने कहा कि यार दीदी को लेने आओ तब जल्दी आ जाना मेरी क्लास भी जल्दी ही छूट जाती है! पहली बार किसी लड़की के मुँह से यार सुना तो मेरे दिल में लड्डू फूटने लगे ! मैंने कहा कि हम फिर मिलेंगे केसे? आप मेरे नंबर ले लो बाहर आओ तो कॉल कर लेना , इतना कहते हुए मैंने अपना कार्ड दे दिया ! बस फिर क्या था वह कॉलेज के अंदर जा रही थी और मैं उसे ही देख रहा था ! मैं मन ही मन न जाने कितनी कल्पनाये करता हुआ वापस घर आ गया. . . . . ! !
#ओम प्रकाश लववंशी ‘संगम’
परिचय
नाम- ओम प्रकाश लववंशी
साहित्यिक उपनाम- ‘संगम’
वर्तमान पता-कोटा (राजस्थान )
राज्य- राजस्थान
शहर- कोटा
शिक्षा- बी.एस. टी. सी. , REET 2015/2018, CTET, RSCIT, M. A. हिन्दी
कार्यक्षेत्र- अध्ययन, लेखन,
विधा -मुक्तक, कविता , कहानी , गजल, लेख, निबंध, डायरी
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Mon May 21 , 2018
पाकर जो लोग मैल सी धन संपदा भर जाते हैं अहम से इतराते और बल खाते हैं छुद्र नदी सा रह भी जाते हैं फिर, सिमट कर खुद से खुद तक । आता है जब बुरा वक्त हो जाती है अक्सर धन संपदा भी बेमानी तब जो खड़े होते हैं […]
Wha bhut hi jordaar yaar Kasam se Dil Ko touch kar gyi yaar