इश्क़ का रंग

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नहीं मिलती कहीं से अब तो ख़बर तेरी ।
तेरी मोहब्बत के सफ़र में है ज़िन्दगी मेरी ।।
चाहतें दिल की ये अरमान तेरे लिए हैं ।।।
ख़ुद में खुद को ढूंढ रही ज़िन्दगी मेरी ।।।।

अहसास बेज़ुबान होते हैं दिल के यारा ।
उसकी नज़रों में जगह ढूंढ रही ज़िन्दगी मेरी ।।
बेघर हो गया हूं दिल की सौदेबाज़ी में ।।।
तेरी बांहों में पनाह ढूंढ रही ज़िन्दगी मेरी ।।।।

तेरे लबों की ख़ामोशी में राज़ गहरे हैं ।
तेरी ज़ुल्फ़ों के साये मे गुज़रे ज़िन्दगी मेरी ।।
रंग जाने दो मुझे इश्क़ के मरहमी रंग में ।।।

#डॉ.वासीफ काजी
परिचय : इंदौर में इकबाल कालोनी में निवासरत डॉ. वासीफ पिता स्व.बदरुद्दीन काजी ने हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है,साथ ही आपकी हिंदी काव्य एवं कहानी की वर्त्तमान सिनेमा में प्रासंगिकता विषय में शोध कार्य (पी.एच.डी.) पूर्ण किया है | और अँग्रेजी साहित्य में भी एमए कियाहुआ है। आप वर्तमान में कालेज में बतौर व्याख्याता कार्यरत हैं। आप स्वतंत्र लेखन के ज़रिए निरंतर सक्रिय हैं।

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