कुछ तार दिलों के बहके हैं

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कुछ तार सुरों के बहके हैं,
मतवारे पंछी चहके हैं।
दिनमान में भी अब दीप जले,
रात में अब दिनकर चमके।

मन सुन्दर वन-सा घना-घना,
लिपटा भावों से हर तरु तना।
वन जीवों-सी चंचल अभिलाषा,
नहीं निर्धारित कोई इनका बासा।
सब अपनी ही धुन में लहके हैं,
कुछ तार सुरों के बहके हैं।
मतवारे पंछी चहके हैं॥

मन चाहे बस सब लिखती जाऊँ,
कभी कवँल कुमुदिनी बन जाऊँ।
फिर रुप अनोखा लिए खिलूँ,
मंडराते भ्रमर दलों के हृदय हरुं।
नव पल्लव झनझन खनके हैं,
कुछ तार सुरों के बहके हैं।
मतवारे पंछी चहके हैं॥

उन्माद उमड़ उर धड़क रहा,
दमित दावानल अब भड़क रहा।

घनघोर घटा भी झमझम बरसी,
भरती नदियां भी प्यासी  तरसी।
काव्यकोष भर छलके हैं,
कुछ तार सुरों के बहके हैं।
मतवारे पंछी चहके हैं॥

मन क्या कहने को व्याकुल है,
बंधे पाश खुलने को आतुर हैं।
गगन भी अब उड़ता दिखता,
चन्द्र नहीं अब सीधा टिकता।
सब बीच अधर में लटके हैं,
कुछ तार सुरों के बहके हैं।
मतवारे पंछी चहके हैं॥

(शब्दार्थ :बासा-रहने से सम्बंधित)

                                                                      #लिली मित्रा

परिचय : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर करने वाली श्रीमती लिली मित्रा हिन्दी भाषा के प्रति स्वाभाविक आकर्षण रखती हैं। इसी वजह से इन्हें ब्लॉगिंग करने की प्रेरणा मिली है। इनके अनुसार भावनाओं की अभिव्यक्ति साहित्य एवं नृत्य के माध्यम से करने का यह आरंभिक सिलसिला है। इनकी रुचि नृत्य,लेखन बेकिंग और साहित्य पाठन विधा में भी है। कुछ माह पहले ही लेखन शुरू करने वाली श्रीमती मित्रा गृहिणि होकर बस शौक से लिखती हैं ,न कि पेशेवर लेखक हैं। 

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One thought on “कुछ तार दिलों के बहके हैं

  1. बहुत सुंदर
    मन का विहग उमुक्त उड़ानों पर है
    पर ये परवाज बंदूक निशानों पर है
    कल कानन में अनल शिखाये उठी थी
    तरु तने लताये पातप जलाए बैठी थी
    जलाशय क्यों सूखे सन्देह इंसानो पर है।

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