सुपर 30, बलिहारी गुरु अपने गोविंद दियो बताय

0 0
Read Time11 Minute, 45 Second
main_2_0
सुपर 30
बलिहारी गुरु अपने गोविंद दियो बताय
लेखक-निर्देशक
विकास बहल
पटकथा
फरहाद सामजी
अदाकार
ऋतिक रोशन, मृनाल ठाकुर, पंकज त्रिपाठी, नन्दिश संधू, आदित्य श्रीवास्तव, वीरेंद्र सक्सेना
संगीत
अतुल अजय, जिलियस पैकीयम
फ़िल्म से पहले लघु चर्चा :-
दोस्तो स्कूल समय मे गणित एक ऐसा विषय था जिसका नाम आते ही जिस्म के अनेक हिस्सो से पसीना आने लगता था और फ़िल्म बिहार के पटना केएक गणित के शिक्षक आनंद कुमार पर आधारित है या थी जिसे बदल कर प्रेरित घोषणा किया गया,
दोस्तो शिक्षा की बात भारतीय परिप्रेक्ष्य में हो और बेबिगटन मैकाले का जिक्र न हो तो अधूरा लगेगा क्योकि हमारी गुलामी की सही व्यख्या और फायदा इसी ब्रिटिश साम्राज्य का नोकर  जिसे भारतीय शिक्षा पद्धति बनाने के लिए भेजा गया था तो उसका उद्देश्य भारत मे अंग्रेजो के गुलाम और क्लर्क तैयार करना था तो इसी उद्देश्य को लेकर मैकाले ने शिक्षा नीति बनाई और लागू की थी सन 1850 में देश मे 7 लाख 30 हज़ार गुरुकुल थे जिसमें 18 विषय पर अध्ययन होता था, जिस शिक्ष नीति पर राजीव गांधी सरकार ने रद्दोबदल की कोशिश की थी,
वर्तमान में भी आनन्द कुमार एक शिक्षक है जो IIT के लिए उन छात्रों को तैयार करते है जो निर्धन, मिस्कीन, साधन विहीन होते है जिसमे वह 30 छात्रों को प्रतिवर्ष चुनते है और IIT में चयन करवाने के लिए उन्हें तैयार करते है
यह जज्बा निसन्देह मुझे क्या पूरे देश पर एहसान महसूस होने लगा है, देश के संसाधनों, नोकरियो पर जितना हक पूंजीपतियों के है उतना ही हक गरीब मिस्कीन का भी है यही जज्बा दिल को छू गया आनन्द कुमार का , जहां सफलता वहां विवाद भी होते ही है पर हम आनन्द कुमार के जीवन के विवादों को दरकिनार करते है और उपलब्धियों पर चर्चा करते है,
देश मे बॉयोग्राफी की बाड़ आ रही है, भाग मिल्खा भाग, सचिन, धोनी, केसरी, पेड़मेंन, अज़हर, संजू,राजी, लम्बी फेहरिस्त हो सकती है,
पर आनन्द कुमार एक शिक्षक जो कि सामान्य वर्ग से होकर सामान्य छात्रों को असामान्य बनाने की कवायद ही इस उनवान(विषय) को खास बनाती है
अब फ़िल्म पर चर्चा
कहानी,
गुरू गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाय, बलिहारी गुरु अपने गोविंद दियो बताय
गुरू का दर्जा इस देश मे भगवान से भी बुलन्द माना गया है, और यह कहानी गुरू पर आधारित है, कहानी बिल्कुल आसान है कि एक साधनविहीन आनन्द कुमार जो कि गणित के शिक्षक होते है उनकी यात्रा केसी केसी बाधाओ से गुजरी और कैसे आनन्द ने निर्धन छात्रों को उनके मुकाम तक पहुचाया है,
संगीत
अच्छा बना है गाने लगभग सभी परिस्तिथि जन्य (सिचुएशनल) रखे गए है जो कि भारतीय सिनेमा में लंबे समय बाद देखने को मिले है, गाना जोग्राफिया, पैसाये पैसा, बसन्ती नो डांस अच्छे बन पड़े है, बसन्ती नो डांस में तो अमिताभ भट्टाचार्य ने अंग्रेजी और भोजपुरी का गजब का तालमेल डाल दिया हैं , सुनने में कर्णप्रिय लगे, लेकिन कुछ जगह पर जूलियस पैकीयम का बेक ग्राउंड हॉरर दृश्यों का अनुभव देता है,,
फ़िल्म पूरे शिक्षा पद्धति पर प्रहार करती है
शिक्षा मंत्री बोलते दिखे की शिक्षा के नाम पर सरकार से जमीन लेंगे, बिल्डिंग नीचले हिस्से शिक्षा व्यवस्था उसके ऊपर बार उसके ऊपर शहर का सबसे बड़ा बैंक्वेट(शादी) हॉल बनेगा
यह संवाद बदहाल शिक्षा व्यवस्था की गाथा सुना गया है,
निर्देशक विकास बहल ने क्वीन, चिल्लर पार्टी पहले बना चुके है लेकिन इस फ़िल्म में उन्होंने हर आयाम को सफलता ने निभाया हैं
फ़िल्म को चटपटा बनाने के लफड़े में उन्होंने सिनिमाई आज़ादी(सिनेमेटिक लिबर्टी) का का ज्यादा फायदा उठा लिया जिससे फ़िल्म देखते वक्त मन मे सवाल बनने लगते है तो हमारे देश मे फिल्मो में यह चलन बेहद आम भी है उदाहरण दंगल, पेड़मेंन, केसरी, एयरलिफ्ट, पद्मावत लगभग सभी मे यही आज़ादी का भरपूर फायदा लिया गया भी था,लेकिन इस फ़िल्म में आपका ध्यान उधर नही जा पाएगा,
फ़िल्म इतनी कसी हुई है कि 154 मिंट कब पार हो गए पता ही नही पड़ता
अदाकारी
ऋतिक ने सात्विक अभिनय  (मेथड एक्टिंग) शानदार आँगीकृत किया है वैसे भी क्रीश की असल ज़रूरत देश के छात्रों को पढ़ाई में ही है, तो ग्रीक गॉड की इमेज को तोड़ते हुवे ऋतिक ने बड़ी ईमानदारी, लगन, शिद्दत से आनन्द कुमाए आम ज़िन्दगी को पेश किया है यह क़ाबिले तारीफ है,बस कहि कहि वह भोजपुरी भाषाई(एक्सेंट) परोसने पर पकड़ नही बना पाए लेकिन यह गलती नज़र अंदाज़ की जा सकती है, ऋतिक ने भावनात्मक दृश्यों में जान फूक दी है जो कि आपको ऋतिक के अभिनय क्षमताओं से रूबरू कराते हैं, पंकज त्रिपाठी जिस फेक्ट्री से अभिनय के गुर लेकर बाहर आए है वह उनकी हर किरदार की प्रस्तुतिकरण में झलकता है, आदित्य श्रीवास्तव मंजे हुवे अभिनेता सहज अभिनेता है, वीरेंद्र सक्सेना कम काम पर शानदार लगे है, मृणाल ठाकुर पिछली फिल्म लव सोनिया में दिखी थी स्वभाविक लगी है, मुकेश छाबड़ा की कास्टिंग ऐसी लगी मानो किसी माला में मोती पिरो दिए गये है,,
मर्मस्पर्शी पल
ऋतिक उनके पापा, भाई तीनो एक सायकल पर जाते है दृश्य दिल मे घर जाता है, आनन्द कुमार चोरी धिपे एक वाचनालय में पड़ रहे होते है उन्हें धक्के मार कर बाहर निकालना फिर उसी पुस्तक में आनन्द का शोध छपना फिर आनन्द का उस वाचनालय के चपरासी के पैर छुना,, अंतिम दृश्य में छात्रों की सफलता पर भवनात्मक दृश्य में ऋतिक ने जान डाल दी है,,
एक और दृश्य जिसमे सभी सुपर 30 छात्र मिलते है ऋतिक से, उस पर बेकग्राउंड विद्या विद्या सरस्वती का गूंजना भी दिल को छू जाता है, आनन्द कुमार का एक छात्र अमेरिका में सफलता के झंडे गाड़ कर आनन्द कुमार की कहानी बयां करता है
पटकथा
लाजवाब है कई संवाद आपको सालो तक याद रहेंगे, जिसे फरहाद ने बड़ी ईमानदारी से लिखा है, एक संवाद “की ये अमीर लोग खुद के लिए चिकनी सड़के बनाए और हमरे लिए राहों में बड़े बड़े गड्ढे खोद दिए पर हमें छलांग लगाना सीखा दिए एक दिन सबसे बड़ी छलांग हम ही लगाएगे ये संवाद नकारात्मकता में भी सकारत्मकता खोज लेने वाली बात है जो लाजवाब है,,फ़िल्म हमारे परम्परागत गुरुकुल व्यवस्था की याद ताजा कर गई
हमरा नज़रिया,,
चुकी सिनेमा समाज का आईना होती है तो इस विषय यानी हमारी शिक्षा पद्धति पर सवाल उठाती और भी फिल्मो की दरकार और रहेगी,,
बजट और कमाई
फ़िल्म की लागत 45 करोड़, 15 करोड़ विज्ञापन, वितरण, प्रदर्शन खर्च जोड़कर 60 करोड़,
फ़िल्म के सेटेलाइट अधिकार बेच दिए गए 60 करोड़ में थियेटर अधिकार 45 करोड़ में, संगीत अधिकार 10 करोड़ में बिक चुके है तो फ़िल्म अपनी लागत से दुगना प्रदर्शन के पूर्व ही निकाल चुकी है फिर भी पहले दिन की शुरूआत 8 से 12 करोड़ की हो सकती है अब जबकि भारत की वर्ल्ड कप से वापसी हो गई तो सन्डे को 25 से 35 करोड़ का सप्ताहांत मिल सकता है
निष्कर्ष
फ़िल्म अभिप्रेरणा से भरपूर है, देश के हर छात्र के साध अध्यापक को भी फ़िल्म देख कर प्रेरणा लेनी चाहिए
सरकार को नैतिक जवाबदारी मानते हुवे फ़िल्म टेक्स फ्री कर देना चाहिए
फ़िल्म आपकी परवाज़ को पंख लग देगी
शायद फ़िल्म हमारे देश की सरकार के कान तक पहुचने में भी कामयाब हो जो शिक्षा पद्धति पर भी अपना ध्यान दे पाएगी ??
फ़िल्म को 3.5 स्टार्स

#इदरीस खत्री

परिचय : इदरीस खत्री इंदौर के अभिनय जगत में 1993 से सतत रंगकर्म में सक्रिय हैं इसलिए किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं| इनका परिचय यही है कि,इन्होंने लगभग 130 नाटक और 1000 से ज्यादा शो में काम किया है। 11 बार राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व नाट्य निर्देशक के रूप में लगभग 35 कार्यशालाएं,10 लघु फिल्म और 3 हिन्दी फीचर फिल्म भी इनके खाते में है। आपने एलएलएम सहित एमबीए भी किया है। इंदौर में ही रहकर अभिनय प्रशिक्षण देते हैं। 10 साल से नेपथ्य नाट्य समूह में मुम्बई,गोवा और इंदौर में अभिनय अकादमी में लगातार अभिनय प्रशिक्षण दे रहे श्री खत्री धारावाहिकों और फिल्म लेखन में सतत कार्यरत हैं।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

विकास

Sat Jul 13 , 2019
सबका का साथ सबका विकास नारा देकर वे वोट पा गए फिर से बिना कुछ किये सत्ता में आ गए देवभूमि  उत्तराखंड में शराब फैक्ट्री खुलवा रहे है तीर्थ जनपद हरिद्वार में स्लाटर हाऊस बनवा रहे है आमदनी बढ़ाने के लिए तेल की कीमतें बढा रहे है  सबका साथ पाकर […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।