
वह कला, भाषा और संस्कृति के रंगमंच (थियेटर) पर चीख-चीख कर कह रहे थे कि डोगरी भाषा को वह स्थान नहीं मिला जिसकी वह हकदार है। जीवनभर हमारा प्रयास रहा कि मातृभाषा को सम्मान के शिखर पर ले जाऐं। जिसके लिए हमने अनेक प्रस्ताव पास किये, कठिन से कठिन संघर्ष किये, जम्मू से दिल्ली तक अकादमी के अधिकारियों की ईंट से ईंट बजा दी और आगे भी बजाते रहेंगे। रंगमंच कक्ष में तालियां की गूंज आसमान भेद रही थी।
अगले दिन वह महाशय कला, भाषा और संस्कृति के सचिव के पैरों में गिर कर अपने लिए साहित्य पुरस्कार की मांग कर रहे थे।
वाह कला पक्ष में निपुण हो, संस्कृति में भी अद्वितीय हो इसलिए "पुरस्कार" तो आपका बनता है मातृभाषाद्रोही? सचिव के मूंह से अनायास कटु व्यंग्यात्मक स्वर निकला था।
जय हिंद जय हिंद
जय जय जय हिंद
इंदु भूषण बाली
पत्रकार
व
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी
घर नंबर एक वार्ड नंबर तीन
डाकघर व तहसील ज्योड़ियॉ
जिला जम्मु जेके