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मैं था कहाँ और कहाँ आ कर के बैठा हूँ
अपना सबकुछ किसी गैर पर लुटाकर के बैठा हूँ
उम्र सदियाँ दौर सब
जिसमें मुझको नजर आया था रब
उस अजनबी के इंतजार में सबकुछ गवाकर के बैठा हूँ
कुछ भी फसाना था जो कभी तेरे मेरे उस इश्क का
उस इश्क की बस याद में उम्र को बिताकर के बैठा हूँ
कुछ थी हँसी इन होंठों पर वो शबनम भी तू ले गई
गम ए बरसात के मेरे दिल को बस तू मौसम दे गई
इस लम्हे में भी तेरी मुस्कुराहट दिल में बचाकर के बैठा हूँ
मैं नहीं हो सकता किसी और इस बात पर तू गौर कर
एक मैं हूँ तेरा हर पहर ये बात जमाने को बताकर के बैठा हूँ
न वफा न जफा की उम्मीद है मुझको
हर दफा दिल खफा क्या बता मैं दूँ तुझको
इन बातों का दिल में बोझ भी उठाकर के बैठा हूँ
#नीतेश उपाध्याय
परिचय-
नाम- नीतेश उपाध्याय
साहित्यिक उपनाम- लेखक नीतेश उपाध्याय
राज्य- मध्यप्रदेश
शहर- दमोह
शिक्षा- स्नातक बी.एस.सी
कार्यक्षेत्र- शिक्षक एवं निर्देशक स्कूल के
विधा – काव्य एवं गीत
प्रकाशन- काव्य रंगोली पत्रिका में कविता,एवं devastro.in पर कविता का प्रकाशन
सम्मान- जीवन साहित्य से सम्मान, अखिल भारती से सम्मानित काव्य क्षेत्र में
अन्य उपलब्धियाँ- कविताओ एवं खेल क्षेत्र में
लेखन का उद्देश्य- सामाजिक सुधार एवं उत्साही जीवन पर लक्ष्य।
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Sun Jun 30 , 2019
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