कालापन-गोरापन

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jay

ये हमारे यहाँ का बड़ा ‘अजीब’ रिवाज़ है..जन्म लेते ही लोगों को दो वर्ग में बाँटने का।
दो -काले और गोरे का वर्ग।
बात यहीं पर ख़त्म नहीँ होती है।
बड़ी प्रतिभा है हममें,इसके अंदर भी बढ़िया वर्गीकरण है..काले तो कितने काले,सांवले और गोरे में भी गेंहुएं,दूधिया,अलाना-फलाना,इम्का ढिमका।
वर्गीकृत करना गलत बात नहीं है ,ये एक तरह से आपकी वैज्ञानिकता का परिचय देता है। बहुत से मानवशास्त्रियों ने भी त्वचा के रंग के चार्ट दिए हैं।
गलत तो तब हो जाता है,जब हम इसे अपने चश्मे से देखते हैं..गोरेपन को तो ऐसे स्वीकार किया जाता है हमारे यहाँ..जैसे वह एक आदर्श रंग हो।
हमारे यहाँ तो लोगों ने भगवानों को तक नहीं छोड़ा। कहेंगे उन्हें श्याम वर्ण का..और दिखाएँगे नीले रंग में।
सभी को यह समझना चाहिए..कि
काले रंग का विपरीत है -‘अ-काला'(वह जो काला न हो,इसमें कोई भी रंग आ सकता है) और सफेद रंग का विपरीत है-‘अश्वेत'(वह जो सफेद नहीं,मटमैला या धूसर आदि)
लेकिन लोगों के अंदर यह पूर्वाग्रह जन्मजात है कि,काले का उल्टा सफेद और सफेद का उल्टा काला।
अमेरिका ने अपने राष्ट्रपति को ‘अश्वेत’ स्वीकारा, न कि उसे ‘काला’ कहा ,दोनों में बहुत अंतर है।
हमारे यहाँ तो शादी-ब्याह के समय लड़का-लड़की की योग्यता को अलग रखकर पहले उनके रंगों को देखा जाता है। समाज की इस कुंठित विचारधारा के प्रभाव में लड़कियाँ शादी से पहले अपने को गोरा करने पर लग जाती हैं..और इसमें लड़के भी पीछे नहीं रहते हैं।
यहाँ तक कि, अपनी किसी फोटो में भी हम खुद को सम्पादित करके गोरा दिखाना चाहते हैं।
वास्तव में हम दुनिया के सबसे बड़े रेसिस्ट देश हैं..जहाँ लोगों को गोरा करने के लिए क्रीम बेची जाती है। हमें अपनी सोच बदलनी होगी,तभी आगे बढ़ पाएँगे। अंत में बस यही कहूँगा-हाँ, मैं गोरा नहीँ हूँ,और मुझे इस पर गर्व है।’

                                                               #जय रामटेके ‘दाम्यंत्यायन’

परिचय : जय रामटेके ‘दाम्यंत्यायन’ बैहर तहसील (जिला बालाघाट)में रहते हैं। करीब 7 वर्ष से लेख, कविताएँ,लघुकथा इत्यादि लिखने में सक्रिय होकर वर्तमान में मानवशास्त्र,पुरातत्व तथा दर्शन के विद्यार्थी हैं। अपने गृहक्षेत्र में संस्था के माध्यम से सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय हैं।

 

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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