सुनो……
तुम बाल मत कटवाया करो,
और साड़ी भी मत पहना करो..
पूरी कमर दिखा करती है,
सूट ही अच्छा लगता है तुम पर।
मुझे मेक-अप वाला फेस पसंद नहीं,
सादगी ही तुम्हारी सुंदरता है..
मुझे तुम्हारे ये रिश्तेदार बिल्कुल पसंद नहीं,
इनसे बातें मत किया करो..
तुम्हारे फोन का व्यस्त जाना
हमें बर्दाश्त नहीं होता।
तुम्हारी ये सहेली हमें
कुछ ठीक नहीं लगती,
तुम इससे दूर ही रहा करो..
और हाँ!
कहीं आने-जाने की जरूरत नहीं,
जब हम चलें तभी चलना।
और सुनो…
सोशल साइट पर तुम्हारी सक्रियता,
कुछ समझ नहीं आती मुझे..
किससे बात किया करती हो?
कहीं-कहीं पुरुष की पसंद-नापसंद में
स्त्री का अस्तित्व प्रश्नचिन्ह-सा बन जाता है,
और
उसकी इच्छाएं मात्र,
एक फुटबॉल की भाँति
हो जाती हैं
जिसे पुरुष अपनी ही
इच्छानुसार उछालना चाहता है….॥
परिचय : १९८९ में जन्मी गुंजन गुप्ता ने कम समय में ही अच्छी लेखनी कायम की है। आप प्रतापगढ़ (उ.प्र) की निवासी हैं। आपकी शिक्षा एमए द्वय (हिन्दी,समाजशास्त्र), बीएड और यूजीसी ‘नेट’ हिन्दी त्रय है। प्रकाशित साहित्य में साझा काव्य संग्रह-जीवन्त हस्ताक्षर,काव्य अमृत, कवियों की मधुशाला है। कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। आपके प्रकाशाधीन साहित्य में समवेत संकलन-नारी काव्य सागर,भारत के श्रेष्ठ कवि-कवियित्रियां और बूँद-बूँद रक्त हैं। समवेत कहानी संग्रह-मधुबन भी आपके खाते में है तो,अमृत सम्मान एवं साहित्य सोम सम्मान भी आपको मिला है।
बधाई हो बधाई
यथार्थवादी पंक्तियां!!!!
Bahut khub