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जिसकी सूरत पर भावों की कल-कल बहती सरिता है।
उस पर कविता क्या लिखूँ जो खुद ही एक कविता है।
रुप की रुप, धूप धूप का ताप, ताप का क्या कहना।
मूल बढ़ाया कुंडल का जो
कानों में इसको तूने पहना।
लाल गाल पर तिल तिल का
जादू का क्या कहना।
तुम्हे देखकर बडा कठिन है,दिल को काबू में रख पाना।
मेरे उर के अंधकार में रुप तुम्हारा सविता है।
जिसकी सूरत पर भावों की बहती सरिता है।
उस पर कविता क्या लिखूँ जो खुद ही एक कविता है।
बिखरे-बिखरे बाल गाल को छूकर कानों तक जातें।
मानो काले मेघ तुम्हें छू छू कर अपने आप से इठलाते।
पतले-पतले होठ कत्थई सरस- रसीले भरे-भरे।
तरुणी तेरी ऑख देखकर प्रेमी पागल हो जाए खड़े-खड़े।
गले दुपट्टा देख ना जाने क्यों दिल को कुछ दुविधा है।
उस पर कविता क्या लिखूँ जो खुद एक कविता है।
रंग तुम्हारा सोने जैसा नाम तुम्हारा ****** है।
कितना सुन्दर रूप तुम्हारा काया कितनी कोमल है।
मेरे मन में पंचम सुर में गीत गा रही कोयल है।
लली तुम्हारी छटा ललितियों लगता है यह ललीता है।
उस पर कविता क्या लिखूँ जो खुद ही एक कविता है।
क्या कमाल है क्य कपाल है संग किसी की चाह रही।
झूठ नहीं सच कहता हूँ *****मेरे दिल को तू भाह रही।
काया तेरी मन को समाया,रुप तेरा एक नवीता है।
उस पर कविता क्या लिखूँ जो खुद ही एक कविता है।
#आलोक प्रेमी
परिचय-
नाम-आलोक प्रेमी
पिता-श्री परमानंद प्रेमी
माता-श्रीमती गोदावरी देवी
स्थाई पता-ग्रा•+पो•-भदरिया
थाना-अमरपुर
जिला-बाँका(बिहार)
813101
शैक्षणिक योग्यता-शोधार्थी नेट (हिन्दी)
अन्य-आकाशवाणी भागलपुर से नियमित रूप से स्वरचित कहानी/कविता/आलेख/वार्ता का प्रसारण।
शौक-अच्छी किताबें खरीदने की
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