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दुःखी होकर करची बोला, कलम से
जमाना बीत गया
जब छिलकर मुझे कलम बनाया जाता
नित्य लिखने के लिए
दवात में डूबोया जाता
शब्दों की लेखनी को आकर्षक
बनाने का कर्णधार मुझे बनाया जाता।
फिर वक्त बदला और
कलम तेरा जन्म हुआ
मेरी महत्ता घटती गयी
शब्दों की आकर्षकता, शालीनता
और लिखावट की सौन्दर्यता
भी पन्नों से हटती गयी।
आज तो न वो लिखावट है
न ही वो शब्दों की सजावट
न करची सी सीधे होने की नीयत
करची की उपयोगिता
तो अब डंडो में तब्दील हो गयी।
डंडा बनकर भी मै उपकार कर जाता
बूढो का सहारा और जीवन रक्षक बन ही जाता।
तू तो आधुनिक है,
कलम और दवात की जगह
अब लीड पेन आ गया
शब्दो का गूगल, कम्प्यूटर और
कट पेस्ट का आसान स्कीम आ गया
शब्दों की तो चोरी करने
तर्कहीन मशीन आ गया
तभी तो शब्दो में,
अल्हड़पन और ओछापन छा गया।
शिक्षकों के हाथो में जबतक रही करची
छात्रो की सभ्यता अलग ही झलकती रही
अब तो कोई छूता भी नही छड़ी
डर लगा रहता कोई हंगामा ना हो खड़ी
सिर्फ ड्यूटी करूँ अपना काम चल पड़ी।
लुप्त हो गयी वो गोल-गोल लिखावट
राइटिंग के नाम पर सिर्फ दिखावट
अब लाइन सीधी नहीं होती
अनुस्वार और विसर्ग की फजीहत नहीं होती।
छड़ी की डर अब रही नहीं
स्लेबस भी बदल गयी
मनमौजी कूटकूट कर भरी गयी
डर भय तो जैसे छुट ही गयी।
“आशुतोष”
नाम। – आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम – आशुतोष
जन्मतिथि – 30/101973
वर्तमान पता – 113/77बी
शास्त्रीनगर
पटना 23 बिहार
कार्यक्षेत्र – जाॅब
शिक्षा – ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन – नगण्य
सम्मान। – नगण्य
अन्य उलब्धि – कभ्प्यूटर आपरेटर
टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य – सामाजिक जागृति
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