जिनशासन

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saket jain
आज श्रुत पंचमी के पावन अवसर पर एक रचना, जो कि सुनील भैया जी शिवपुरी वाले की कथाओं के तर्ज पर आधारित है सादर प्रेषित है ।
जिनशासन की गौरवगाथा आज बताते हैं ।
श्रुत पंचमी पर्व की मंगल कथा सुनाते हैं ।।
सुनो जी जैनधर्म इतिहास ।
यासों होवे दृढ़ विश्वास ।।
निज को निज पर को पर जाने, तीन कषाय हरें,
श्री धरसेनाचार्य मगन निज वन में वास करें ।
वन में बैठे एक दिवस उनको विचार आया,
कालदोष से बुद्धि ह्रास का संकट भरमाया ।
ऐसे में श्रुत परम्परा का आगे क्या होगा,
शेष ज्ञान  को लिपिबद्ध अब से करना होगा ।
यही सोच मुनि अर्हद्बलि को संदेश भिजाते हैं ।
श्रुत पंचमी पर्व की मंगल कथा सुनाते हैं ।।
सुनो जी जैनधर्म इतिहास ।
यासों होवे दृढ़ विश्वास ।।
बोले भेजो दो मुनियों को योग्य शिष्य हों जो,
कथित परीक्षा सफल करें ऐसे हों वे दोनों ।
नाम सुबुद्धि और नरवाहन ये दोनों मुनिराज,
आकर बैठे विनय चितेरे श्रीगुरुवर के पास ।
हुई परीक्षा मंत्र सिद्धि कर सफल हुए मुनिराज,
स्व विवेक को जागृत रखकर किया उन्होंने काज ।
पुष्पदंत और भूतबलि संबोधन पाते हैं ।
श्रुत पंचमी पर्व की मंगल कथा सुनाते हैं ।।
सुनो जी जैनधर्म इतिहास ।
यासों होवे दृढ़ विश्वास ।।
गुरु से सुन सारे श्रुत को अंतस में फिर सींचा,
पुष्पदंत मुनिराज ने उसका प्रथम चित्र खींचा ।
एक सतत्तर गाथाओं की लिखी रूपरेखा,
जिसको आगे चलकर भूतबलि मुनि ने देखा ।
भूतबलि महाराज ने ही फिर सारा काम किया,
ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी तिथि को पूरण काज किया ।
तब से ही हम सब मिलकर यह पर्व मनाते हैं ।
श्रुत पंचमी पर्व की मंगल कथा सुनाते हैं ।।
सुनो जी जैनधर्म इतिहास ।
यासों होवे दृढ़ विश्वास ।।
श्री गुरुओं ने करुणा कर यह बात बताई है,
दूर दृष्टि थी उनकी सो जिनवाणी पाई है ।
अगर अभी भी हम इनका स्वाध्याय नहीं करते,
निष्फल फिर यह पर्व मनाना ऐसा क्यों करते ।
अतः कल नहीं आज अभी यह निर्णय करना है,
तत्त्वविचार और निर्णय पूर्वक जीना मरना है ।
इसमें ही तो जीवन की सुख राह बताते हैं ।
श्रुत पंचमी पर्व की मंगल कथा सुनाते हैं ।।
सुनो जी जैनधर्म इतिहास ।
यासों होवे दृढ़ विश्वास ।।
साकेत जैन शास्त्री ‘सहज’
जयपुर(राजस्थान)

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